Saturday, March 14, 2015

ठहराव के खिलाफ जिंदगी

                      

आलेख 
जवाहर चौधरी 

  आज की भागती जिन्दगी ने हर तरह के ठहराव को नकार दिया लगता है। परिवार को ही लीजिए, इस समय लाखों की संख्या में तलाक के प्रकरण कोर्ट में लंबित हैं और प्रतिदिन सैकड़ों नए प्रकरणों की भूमिका तैयार हो रही है। मुंबई, दिल्ली या बैंगलोर के आंकडे सुर्खियों में दिखाई दे जाते हैं लेकिन छोटी जगहों में भी पारिवारिक तनाव हर चौथे घर में जगह बना चुका दीखता है। जहां तलाक का सब्र और समझ नहीं हैं वहां आत्महत्या और हत्या तक हो रही हैं। हाल ही में दिल्ली के एक इंजीनियर पर पत्नी को क्रिकेट के बैट से पीट कर मार डालने की खबर चौंका रही है। छोटे शहर में भी पारिवारिक तनाव/विवाद के चलते आत्महत्या की खबरें प्रायः छपती रहती हैं। यह अच्छा है कि स्त्रियों में शिक्षा, सामर्थ्य  और चेतना बढ़ी है, इसके साथ ही उनकी अपेक्षाएं और साहस भी बढ़ा है। इस विषय पर कारण आदि पर जाने से विस्तार अलग हो जाएगा। दरअसल इस पृष्ठभूमि पर मुझे एक बहुत पुरानी घटना याद आ रही है।
                लगभग पैंतालीस साल पहले का वाकया है, हमारे एक साथी रामेन की शादी होना तय हुआ। उन दिनों लड़की देखने या लड़के से पूछने का रिवाज नहीं था। बड़े अपने हिसाब से देखभाल कर सब तय कर लिया करते थे। लड़कों की हिम्मत नहीं कि कोई सवाल कर लें। खेती करने वाले परंपरावादी कृषक संयुक्त परिवार, और हर घर में सामंती रवैया। ऐसे में रामेन को पता चला कि जिस लड़की से उसका विवाह होने जा रहा है वह सांवली और लंगड़ी है। उस जमाने में इधर लड़कियों के पढ़ेलिखे होने का तो सवाल ही नहीं था। खुद रामेन किसी तरह दसवीं कक्षा तक पहुंचा था। रामेन की हिम्मत नहीं कि अपने पिता से या अपने घर में किसी से इस विषय में कुछ कह पाए। मैं दूसरे परिवार का, चौधरी पुत्र। हमारा बीज यानी सीड्स का व्यापार भी था। रामेन के पिता प्रायः हमारे प्रतिष्ठान पर बैठते थे सो मेरा उनसे राफ्ता था। रामेन मुझसे सालेक भर छोटा है। इस दृष्टि से मैं भी उसके पिता का सामना करने का अधिकार तो नहीं ही रखता था। लेकिन बात जब कहीं बन नहीं पा रही हो तो साहस किया। कहा कि रामेन लंगडी लड़की से विवाह नहीं करना चाहता है। सुन कर वे गंभीर हो गए। बोले- अगर लड़की विवाह के बाद लंगड़ी होती तो क्या हम या रामेन उसे निकाल देते ? मैंने कहा वो बात अलग होती। लेकिन अभी तो ......। 
                        वे बोले -‘‘ अगर कहीं रामेन लंगडा होता तो क्या उसका विवाह नहीं हो पाता ? कोई न कोई लड़की तो उसे पति बनाती ही ना ?
                         इस बात का कोई जवाब नहीं दे पाया मैं। उन्होंने साफ किया कि - ‘‘ शादी -ब्याह दो परिवारों का संबंध है, बच्चे उसमें निमित्त मात्र होते हैं। रिश्तेदारी  में खानदान देखा जाता है। लड़की लंगडी सही पर उसके बच्चे अच्छे होंगे। परिवार को और क्या चाहिए। ...... और अब हमने जुबान दे दी है। बात अटल है और उससे पीछे हटना कतई संभव नहीं है। ’’
                         रामेन की नहीं चली। हम विवाह में शामिल हुए। उस जमाने में वैसे भी पत्नी को ले कर घूमने का रिवाज नहीं था। विवाह होते ही सारी समस्याएं भी समाप्त हुई मान ली गईं। जीवन की चक्की प्रेम से चल पड़ी। एक पैर का दोष  कहीं बाधा नहीं बना और वे जीवन का पहाड़ लांध गए। 
                       हाल ही में रामेन के बेटे के विवाह का निमंत्रण मिला तो गुजरा हुआ सामने आ गया। लड़की ठीक है लेकिन गरीब घर की है। रोमन बोला- ‘‘ अंग की पूरी है और यही हमारे लिए बड़ी बात है। बच्चे खुश  रहें और क्या चाहिए। लगा उसने पैतालीस साल पुरानी कमी को आज सुधार लिया है। लेकिन तलाक कोई विचार न पहले कहीं था और पक्के तौर पर आगे भी नहीं होगा। पारिवारिक गरिमा की वैसी मिसाल शायद अब तो पिछड़ापन ही माना जाएगा। 
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