Sunday, April 21, 2019

मौसम बदल रहे हैं...


श्री नरेंद्र शर्मा एक बहुआयामी व्यक्तित्व हैं । उनका
जीवन अनुभव विविधताओं से परिपूर्ण है । अवलोकन
की सूक्ष्म दृष्टि और संवेदना का विस्तृत फ़लक उन्हें
एक गंभीर रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करता है । हिन्दी
के साथ वे उर्दू में भी रचते हैं । कविता और गज़लों के
माध्यम से जीवन दर्शन उनकी विशेषता है ।
यहाँ उनकी ताजा रचनाएँ ।
अवलोकनार्थ प्रस्तुत है ----




ज़िन्दगी ... वरक़ वरक़ ...
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जीवन की इस पुस्तक ने तो बना दिया घनचक्कर,
किसी पेज़ पर पहेलियाँ हैं और किसी पर उत्तर !


सुख और दुःख के एक सरीखे चित्र दिए और पूछा,
लालबुझक्कड़ इन दोनों में बतलाओ दस अंतर !


एक सफ़े पर विज्ञापन था, "किस्मत नई करालो",
"शर्तें लागू" लिखा हुआ था, बेहद  छोटे अक्षर !


अनुक्रम के अनुसार कोई भी लेख नहीं खुलता है,
छापने वाले ने डाले हैं उलटे सीधे नंबर !


शीर्षक है "रिश्ते" किताब का, बाइंडिंग कमज़ोर,
वरक़ वरक़ हो जाती है ये चंद रोज़  के अन्दर !


 - नरेन्द्र शर्मा



मौसम बदल रहे हैं...

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तनहाइयों से इतना घबराने लगा हूँ मैं
अपने ही अक्स से बतियाने लगा हूँ मैं


बेरोज़गार दिल को कुछ काम तो मिलेगा
सुलझे हुए मसलों को उलझाने लगा हूँ मैं


महफ़िल में दोस्तों का  जी ऊबने लगा है
ढलते ही शाम वापस घर आने लगा हूँ मैं


मौसम बदल रहे हैं, बदलेंगे दिन कभी तो
ख़ुद को इसी बहाने बहलाने लगा हूँ मैं


ख़ानाखुराक मेरा बिलकुल बदल गया है
पीता हूँ अश्क़ अब ग़म खाने लगा हूँ मैं


- नरेन्द्र शर्मा

Monday, April 1, 2019

भैरप्पा का ऐतिहासिक उपन्यास "आवरण "

                 
आलेख 
जवाहर चौधरी               


    हाल में  ऐतिहासिक उपन्यास "आवरण" पढ़ने का मौका मिला । यह मूलरूप से  कन्नड़ में लिखा भैरप्पा का उपन्यास है और हिंदी में प्रधान गुरुदत्त द्वारा अनूदित है । कन्नड़ में इसके 23  से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं । आरंभ में तो यह इतना लोकप्रिय हुआ कि हर सप्ताह संस्करण छापने पड़े । हिंदी में  सन 2010 में किताबघर से प्रकाशित हो कर आया । भैरप्पा के और भी उपन्यास हिंदी में अनूदित हुए और खूब लोकप्रिय हुए हैं ।
              पाठकों ने जहां उपन्यास "आवरण" को हाथों हाथ लिया और लोकप्रिय बनाया वहीं इसकी आलोचना भी कम नहीं हुई । अब तक इस उपन्यास की आलोचना/समीक्षा में पाँच कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं और पत्र-पत्रिकाओं में ढेरों लेख लिखे जा चुके हैं । वामपंथी विचारधारा के समर्थक भैरप्पा के इस काम पर अपनी नापसंदगी व्यक्त करते रहे हैं । इस कृति में लेखक ने मुस्लिम समाज की वर्तमान प्रवृत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर कथा का ताना-बाना बुना है जो रोचक तो है ही चौंकाने वाला भी है । इतिहास के तमाम वे तथ्य जो या तो इतिहासकारों ने छोड़ दिए  या उनसे छूट गए, उनमें से कुछ  पुस्तक सामने रखती है।
                 लेखक उपन्यास के संदर्भ में लिखते हैं की "इस उपन्यास की ऐतिहासिकता के विषय में मेरा अपना कुछ भी नहीं है प्रत्येक अंश के लिए जो ऐतिहासिक आधार है उनको साहित्य की कलात्मकता जहां तक संभाल पाती है वहां तक मैंने उसे उपन्यास के अंदर ही शामिल कर लिया है।"
             एक पाठक के तौर पर मुझे लगता है की भैरप्पा के इस उपन्यास को पढ़ा जाना चाहिए । यह बहुत सारे सच को सामने रखता है और  ऐसे प्रश्नों का उत्तर देता है जो पीढ़ियों से अनुत्तरित चले आ रहे हैं । हो सकता है कि इसमें कुछ बातें विवादास्पद सी प्रतीत हों,  लेकिन जीवन में कितना कुछ विवादास्पद घटित हो रहा है , उसके आगे यह कुछ भी नहीं है । खासकर  तब  जब वह  हमारी  आंखें खोलता है  और  देखने की , सोचने की  दृष्टि भी  निर्मित करता है । बहुत समय बाद मैं ऐसी कृति पढ़ पाया हूं जिसने आरंभ से अंत तक मन मस्तिष्क को कहीं भी विचलित नहीं होने दिया ।
                इन दिनों साहित्य की कृतियां प्रकाशित तो बहुत हो रही है लेकिन छोटे बड़े शहरों में उनके विक्रय केंद्र लगातार खत्म होते जा रहे हैं । शुक्र यह है की अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी ऑनलाइन कंपनियों से छूट के साथ साहित्यिक पुस्तकें उपलब्ध हो जाती हैं ।  किताबघर दिल्ली से प्रकाशित इस उपन्यास का मूल्य 245 रुपए है और खासी छूट के साथ ऑनलाइन उपलब्ध है । 

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