Thursday, July 30, 2015

टीवी के लिए आचार संहिता हो






आलेख 
जवाहर चौधरी 


इनदिनों घरों में  लोग अक्सर चिढ़ कर टीवी बंद कर देते हैं। उस दिन मैंनें भी बंद किया और रात तक चालू नहीं किया। पिछले तीन-चार दिनों से एक फांसी को लेकर हर चैनल पर इतनी घमासान मची थी जितनी शायद उस दिन भी नहीं मची जब 257 बेकसूर लोग घमाकों में मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे। एक लोकतांत्रिक देश  की बुनियाद में संविधान होता है। देश का हर नागरिक कानून के दायरे में है। हमारी न्याय व्यवस्था पर धीमें काम करने का आरोप अक्सर लगता रहा है। उक्त प्रसंग में भी देखें तो मामला 22 साल पुराना है। यह भी कहा जाता है कि कानून की तमाम गलियों के कारण कई बार अपराधी छूट भी जाते हैं। कानून स्वयं मानता है कि चाहे सौ अपराधी छूट जाएं पर एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए।
                          इस सिद्धांत और विचार के प्रकाश में अपराधी को अपना बचाव करने के असीम अवसर हमारी न्याय व्यवस्था प्रदान करती है। ऐसे में अगर सर्वोच्च न्यायालय अपना काम कर रहा है तो टीवी चैनलों को अनावश्यक बहसें कर वातावरण को कलुषित करने की क्या जरूरत है ? नेता तो अपने राजनीतिक हितों को ध्यान में रख कर बयान देते हैं न कि सत्य, दे और नैतिकता के आधार पर बोलते हैं। जनता इस बात को समझती भी है और उनके बयानों की प्रायः खिल्ली उड़ाती है। किन्तु अफसोस टीवी चैनल इनसे अपनी रोटी या जिसे ये लोग कहते हैं टीआरपी सेंकती है। उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि टीआरपी से अंततः कौन जुड़ा हुआ है। टीवी के उनके दर्शक  ही टीआरपी हैं। दर्शक  मासूम ही सही पर टीवी के अन्नदाता हैं। टीवी को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि खबरों को मिर्च-मसाला लगा कर इस तरह प्रस्तुत न करे जिससे किसी को भड़कने या भड़काने का मौका मिल जाए। जनता बड़े प्रयासों और धैर्य से सामाजिक सौहार्द का सृजन करती है।  यह बात और है कि स्थिति बिगड़ने पर खबरों के बाजार में नया बिकाऊ  माल आ जाता है। किन्तु चैनलों को टुच्ची व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा से बचना चाहिए। सरकार का भी दायित्व बनता है कि टीवी के लिए आचार संहिता का सख्ती से पालन करवाए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खुल्ली छूट नहीं मिल जाना चाहिए। आखिर दे में फिल्मों के लिए भी सेंसर बोर्ड है, नियम कायदे हैं तो टीवी ‘नंदी’ बने बेलगाम  कैसे घूम सकते हैं। दंगों के समय दंगा-लाइव, घमाकों के समय घमाका-लाइव, द्वेष फैलाने वालों के साथ उकसाती बहसें-लाइव ! पश्चिम  वालों ने इसे इडियट बाक्स कहा लेकिन हमारे यहां यह अग्ली-बाक्स होता जा रहा है।
                                                                                ---------