Monday, August 15, 2022

समय से सक्षात्कार कराता व आलोचनात्मक विवेक से तंज करता संग्रह



समीक्षा 
सुरेश उपध्याय,इंदौर
 

                गांधी जी की लाठी मे कोंपले ख्यात व्यंग्यकार  जवाहर चौधरी का अद्विक पब्लिकेशन प्रा. लि., दिल्ली से हाल ही मे प्रकाशित ग्यारन्हवा व्यंग्य संग्रह है. साहित्य की विभिन्न विधाओ मे सक्रिय श्री चौधरी के ग्यारह व्यंग्य संग्रह,  दो उपन्यास, दो कहानी संग्रह, एक लघुकथा संग्रह व एक नाटक पूर्व मे प्रकाशित है.

          व्यंग्य को साहित्य की विधा के रूप मे स्थापित होने मे लम्बी जद्दोजहद से गुजरना पडा है. उसके पक्ष – विपक्ष के अपने वाजिब तर्क है. यदि आज भी कहीं संशय की स्थिति है तो इस संग्रह को अवश्य पढा जाना चाहिए,यह एक मुक्कम्मल व्यंग्य  संग्रह है. सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई ने व्यंग्य को जीवन से साक्षात्कार और जीवन की आलोचना कहा है. इस कसौटी पर भी यह व्यंग्य संग्रह खरा उतरता है.

धर्म, अर्थ, समाज, राजनीति, मीडिया व पारिस्थिति की जनजीवन को गहराई से प्रभावित करते है. इस संग्रह मे इन सभी क्षेत्र मे व्याप्त विसंगतियों , विडम्बनाओं  व विद्रुपताओं  को उकेरा गया है. राजनीति, लोकतांत्रिक मूल्यो व संस्थाओं  के क्षरण की चिंताए इसमें  दृष्टिगोचर होती है. भूमंडलीकरण, निजीकरण व उदारीकरण की आर्थिक नीतियों  से उपजी गरीबी, महंगाई , बेरोजगारी, मंदी, भुखमरी , आत्महत्याओ की चिंता के साथ शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र मे लूट व उपभोक्तावाद के प्रभावो को भी रेखांकित किया गया है. मौद्रीकरण के नाम पर सार्वजनिक क्षेत्र की बिक्री पर तीखा व्यंग्य किया गया है.

            आधुनिक दृष्टि, प्रगति के दावों  व अनेक कानूनों  के बावजूद सामाजिक विषमता व भेदभाव की जो स्थितिया हैं , उसका समाजशास्त्री व मनोविज्ञानी की तरह विश्लेषण जवाहर चौधरी जी ने किया है. इस अंतर्द्वंद को कठिन डगर दलित के घर की मे गहराई से उभारा गया है. स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की घटनाओ और परिदृष्य का एक बडा केनवास इसमे है. आदमी है या कोई वायरस और चिडिया से खतरा मे मजहबी कट्टरपंथ व आतंकियो के दमन मे स्त्रियों  की विकराल होती तकलिफों  पर तंज है.

                  संग्रह की कई रचनाए कोरोना काल की है. इस दौर के सबसे विभत्स वाक्य आपदा मे अवसर  का उल्लेख भले इसमे न हो – इसकी विभत्सता का प्रभावी चित्रण किया गया है.  बेमारी बाजार मे राम-देसी-वीर  मे इस कालखंड की लूट, कालाबाजारी, अमानुषता के साथ पारिवारिक दायित्व व अंधविश्वास को भी रेखांकित किया गया है.  गांधी जी की लाठी मे कोंपले  फिल्म पीपली लाइव व गणेश जी के दूध पीने के समय की याद ताजा कर देती है – जिसे अवैज्ञानिक व अंधविश्वास आधारित अफवाह के प्रसार के लिए लिटमस टेस्ट की तरह देखा गया था.

               भावनाओं के आहत होते, झूठ को सच के तौर पर परोसते, राष्ट्रप्रेमी होने के दावे करते, राष्ट्रद्रोही के प्रमाणपत्र बांटे जाते, विकास की माला जपते तथा भयावह कारुणिक स्थिति में  आदमी की खुशहाली के दावे करते समय पर प्रभावी व्यंग्य को –  नए अंधो का हाथी, लांग लिव सुल्तान, अनुभव कीजिए आजादी, खुशी एक हवा, अश्वत्थामा हतौ, भावना आहत करे – सत्ता मे आए, सब चंगा है जी  शीर्षक व्यंग्य मे देखा जा सकता है।  बानगी स्वरूप कुछ उद्धरण – “ जिसका झूठ भी सच लगे वही सच्चा लीडर होता है।  जब वह कहता  है कि सब अच्छा है तो सबको मान लेना चाहिए कि सब अच्छा है. जो शंका करके शगुन बिगाडेगा वह देशद्रोही माना जाएगा (नए अंधो का हाथी), “जब सुल्तान देशप्रेम की बात करते है तो इसका मतलब रियाया यह माने कि वे मोहब्बत कर रहे है. ऐसे मे रियाया को चाहिए कि मोहब्बत मे सच – झूठ, सही – गलत, वादा – सौदा वगैरा कुछ नही देखे – सुल्तान प्रेम ही देशप्रेम है ( लांग लिव सुल्तान), “कोई कितने भी मन्हगाई को लेकर उकसाए, पेट्रोल के भाव बताए, कोरोना वाले मौत के आंकडे गिनवाए,आप विचलित नही होंगे, शांति से बैठेंगे. जिस समय आजादी का आनंद लेने की प्रक्रिया चल रही है, उस समय किसी भी प्रकार का विचलन देशद्रोह माना जाएगा (अनुभव कीजिए आझादी)”, “धराधीश के लिए खुश होना सच्ची देशभक्ति है ----- हर समय रूदन का दासकेपिटल लिए फलफूल रही खुशी मे खलल डालना देशद्रोह है ( खुशी – एक हवा)”, “जो झूठ को झूठ मानते है वे गलत तरीके से शिक्षित है और कम्यूनिस्ट भी है, इनसे सख्ती से निपटने की जरूरत है. हाथो मे लाल रूमाल लेकर, सच के नाम पर आदर्श सामाजिक व्यवस्था को बिगाडने की इजाजत इन्हे नही दी जा सकती है (अस्वत्थामा हत:)”, “चुनाव आते ही भावना आहत कर दे या भावना आहत हो चुकी हो तो तुरंत चुनाव करवा ले  -------- भावनाए पोल्ट्री फार्म की मुर्गियो की तरह होती है, जिन्हे मार देने के लिए ही पाला जाता है. लोकतंत्र मे आहत भावना सत्ता के लिए रेड कारपेट होती है (भावना आहत करे –सत्ता मे आए), “मजदूरो के पैर धोने से अर्थव्यवस्था और बैंको की कर्जनीति पर कोई असर नही पडेगा. जो लोग दशको से गरीबी हटाओ का नारा लगाते रहे है, उन पर पांच मजदूरो के पैरो की धुलाई भारी पडेगी ( धराधीश के कर-कमलो से)

                जनता की चुप्पी व जनपक्षधर राजनीति की कमजोर स्थिति का चित्रण भी इसमे है तो बेमेल राजनीतिक गठजोड पर शेर के नाखून पर नेल पालिश तथा पीठ खुजाइए सरकार मे प्रभावी तंज है. हिंदी भाषा और साहित्य के बारे मे समझ को लेकर तीखा तंज  प्रेमचंद मुंशी थे जो बाद मे सम्राट हो गए थे  (सम्राट मुंशी है जन्हा) किया गया है. विश्वविख्यात जर्मन नाटककार ब्रेख्त ने कहा था – जब जनता अपने नेताओ का विश्वास खो देती है तो उन नेताओ को अपने लिए दूसरी जनता चुन लेनी चाहिए’, जवाहर चौधरी एक अलग अंदाज मे कहते है  लोग देखना चाहते है लेकिन नही देख रहे है. लोग सोचना चाहते है लेकिन नही सोच रहे है. लोग बोलना चाहते है लेकिन नही बोल रहे है. शासन करने के लिए इससे बेहतर जनता और कन्हा मिलेगी (सब चंगा है जी)’.

               संग्रह की धारदार भाषा के साथ स्थानीय बोली व टोन व्यंग्य की प्रभावशीलता को कई गुना बढा देते है. प्रुफ की कुछ त्रुटिया अनदेखी रही है तथा  नए अंधो का हाथी  के बाद शिक्षा गैर जरूरी लगती है. यह सूचना क्रांति का युग है, जिसमे 24 घंटे सातो दिवस सैंकडो चैनल, रेडियो, प्रिंट मीडिया व सोशल मीडिया सक्रिय है. ऐसे मे वेक्सिन (प्रीवेंटिव) व रेमडेसिविर (क्यूरेटिव) को एक दिखलाना विस्मित करता है. आवरण चित्र मे लाठी पर बेल दिखाई दे रही है, दो-चार कोंपले फूटती दिखाई देती तो यह ज्यादा संगत दिखाई देता. बहरहाल, इस प्रभावी व्यंग्य संग्रह का स्वागत है. यह पाठको को आकृष्ठ करेगा, सोचने व विचार करने के लिए नए आयाम देगा व नए व्यंग्य लेखको को दिशा देगा, ऐसा विश्वास है.   

                                                                          सुरेश उपध्याय,इंदौर

                                                                              94245 94808