Tuesday, August 15, 2017

श्री चंद्रकांत देवताले की तीन कवितायेँ



पुनर्जन्म

मैं रास्ते भूलता हूँ

और इसीलिए नए रास्ते मिलते हैं
मैं अपनी नींद से निकल कर प्रवेश करता हूँ
किसी और की नींद में
इस तरह पुनर्जन्म होता रहता है


एक जिंदगी में एक ही बार पैदा होना
और एक ही बार मरना
जिन लोगों को शोभा नहीं देता
मैं उन्हीं में से एक हूँ


फिर भी नक्शे पर 
जगहों को दिखाने की तरह ही होगा

मेरा जिंदगी के बारे में कुछ कहना
बहुत मुश्किल है बताना
कि प्रेम कहाँ था किन-किन रंगों में
और जहाँ नहीं था प्रेम उस वक्त वहाँ क्या था

पानी, नींद और अँधेरे के भीतर इतनी छायाएँ हैं

और आपस में प्राचीन दरख्तों की जड़ों की तरह
इतनी गुत्थम-गुत्था
कि एक दो को भी निकाल कर
हवा में नहीं दिखा सकता

जिस नदी में गोता लगाता हूँ

बाहर निकलने तक
या तो शहर बदल जाता है
या नदी के पानी का रंग
शाम कभी भी होने लगती है
और उनमें से एक भी दिखाई नहीं देता
जिनके कारण चमकता है
अकेलेपन का पत्थर



मैं आता रहूँगा तुम्हारे लिए 
मेरे होने के प्रगाढ़ अँधेरे को
पता नहीं कैसे जगमगा देती हो तुम

अपने देखने भर के करिश्मे से

कुछ तो है तुम्हारे भीतर

जिससे अपने बियाबान सन्नाटे को
तुम सितार सा बजा लेती हो समुद्र की छाती में

अपने असंभव आकाश में

तुम आजाद चिड़िया की तरह खेल रही हो
उसकी आवाज की परछाई के साथ
जो लगभग गूँगा है
और मैं कविता के बंदरगाह पर खड़ा
आँखे खोल रहा हूँ गहरी धुंध में

लगता है काल्पनिक खुशी का भी

अंत हो चुका है
पता नहीं कहाँ किस चट्टान पर बैठी
तुम फूलों को नोंच रही हो
मैं यहाँ दुःख की सूखी आँखों पर
पानी के छींटे मार रहा हूँ
हमारे बीच तितलियों का अभेद्य परदा है शायद

जो भी हो

मैं आता रहूँगा उजली रातों में
चंद्रमा को गिटार सा बजाऊँगा
तुम्हारे लिए
और वसंत के पूरे समय
वसंत को रुई की तरह धुनकता रहूँगा
तुम्हारे लिए


यमराज की दिशा 
माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है

पर वह जताती थी
 जैसे ईश्वर से उसकी बातचीत होते रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और 
दुःख बर्दास्त करने का रास्ता खोज लेती है

माँ ने एक बार मुझसे कहा था 

दक्षिण की तरफ़ पैर कर के मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नही है


तब मैं छोटा था

और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था
तुम जहाँ भी हो 
वहाँ से हमेशा दक्षिण में


माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नही सोया
और इससे इतना फायदा जरुर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नही करना पड़ा



मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और हमेशा मुझे माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना सम्भव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता



पर आज जिधर पैर करके सोओं
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे 
सभी में एक साथ
अपनी दहकती आखों सहित विराजते हैं



माँ अब नही है
और यमराज की दिशा भी अब वह नहीं रही
जो माँ जानती थी.