Tuesday, June 27, 2017

कवि माया मृग .......इस तरह पढ़ना दुख को !


इस तरह पढ़ना दुख को .........
दुख को जब भी पढ़ना- उलटा पढ़ना !
आखिरी पन्‍ने से शुरु करना
और शुरुआत का संबंध ढूंढ लेना
पहले पन्‍ने पर लिखे उपसंहार से
ये जानकर पढ़ना कि जो पढ़ा, उसे भूल जाना है----।

उलटे होते हैं दुख के दिन
रात भर खंगाले जाते हैं रोशनी भरे लम्‍हे
आंख बंद रखना अगर देखना है सब----।

दुख को फुनगी से काटना                                          पहली कोंपल का हरा सुख--पहला दुख है
पहला सुख निकालना होगा मिट्टी खोद खोदकर
जो दबा रह जाए उसे रहने देना
इसलिए कि इस दबे का ताल्‍लुक बढ़ने से नहीं है
जो दब गया उसे दबते जाना है---बस---।

उलटाकर देखना तकिए के नीचे रखी
पोस्‍ट ना की गई चिट्ठी
चिट्ठी के कागज को उलट कर देखना
कि कहां लिखा था कुछ जो पढ़ना था उसे
कितने शब्‍द उलटे पलटे पर कहां लिखी गई सीधी सी बात----।

दुख में उलटी चलती हैं घड़ियां
वक्‍त लौटता है हर बार पीछे
चादर को कोने से पकड़ना और उलट देना
रात भर जागे दुख को भनक ना लगे
यह उसके सुख के सपनों में सोने का वक्‍त है....!

प्रिंट मीडिया के ‘वन मैन सॉल्यूशन’ हैं यशवंत व्यास (फेम इंडिया-एशिया पोस्ट मीडिया सर्वे 2017)


आलेख 
जवाहर चौधरी 


यशवंत व्यास एक ऐसे पत्रकार हैं जिन्हें साहित्यकार, मीडिया आलोचक, सलाहकार, डिजाइनर और स्तंभकार सभी कुछ कहा जाता है। प्रिंट मीडिया की हर विधा में उन्हें महारत हासिल है और इसके पीछे उनका 30 से भी अधिक वर्षों का अनुभव काम करता है। कई मीडिया हाउस में संपादक व सलाहकार रहे यशवंत व्यास उन गिने-चुने पत्रकारों में शामिल हैं जो अखबार की डिजाइनिंग का भी अनुभव रखते हैं और अपने हिसाब से लेआउट बनवाने पर विश्वास करते हैं। फिलहाल वह अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया समूह के सलाहकार संपादक हैं जो उत्तर भारत में अपने 20 संस्करणों के साथ अपनी विशेष पहचान रखता है।

1964 में मध्यप्रदेश में पैदा हुए यशवंत व्यास ने हाई स्कूल स्तर तक की पढ़ाई स्थानीय हायर सेकेंडरी स्कूल से की। इसके बाद गर्वमेंट कालेज रामपुरा से उन्होंने  बीएसी की पढ़ाई की। इंदौर के डीएवी यूनिवर्सिटी  से उन्होंने हिंदी लिटरेचर में एमए किया, वह गोल्ड मेडलिस्ट रहे और  लिटरेचर में पीएचडी की।

यशवंत व्यास से अपनी पत्रकारिता का आगाज नई दुनिया से 1984 में किया। यहां उन्होंने बतौर उप संपादक ज्वाइन किया था। नई दुनिया से उनका नाता 1995 तक रहा यानी अपने जीवन के शुरुआती 11 साल उन्होंने यहां बिताये। यहीं से उन्होंने सीखा कि एक कम्पलीट एडीटर को प्रोडक्शन -डिजाइनिंग का भी ज्ञान होना जरूरी है। उन्होंने दैनिक नवज्योति ग्रुप के साथ बतौर ग्रुप एडिटोरियल एडवाइजर 1996 से 1999 तक काम किया। सिंतबर 2000 से मार्च 2010 तक वे डीबीकार्प से जुड़े रहे, जहां  दैनिक भास्कर के एडीटर रहे। 2005 में उन्होंने अपने तरह की अलग और नये कलेवर वाली मैगजीन ‘अहा जिंदगी’ लांच की। यह पत्रिका हिंदी और गुजराती में थी, को काफी सराही गयी। उन्होंने इसे 1.5 लाख प्रिंट ऑर्डर के साथ लॉन्च किया जिसकी रीडरशिप 10.6 लाख से भी अधिक थी। अप्रैल 2010 से यशवंत व्यास अमर उजाला प्रकाशन लिमिटेड के समूह सलाहकार हैं।

यशवंत व्यास, आउटलुक और ओपन के संपादक रहे दिवंगत विनोद मेहता और प्रीतीश नंदी से काफी प्रभावित रहे हैं । उन्होंने इन संपादकों से सीखा है कि एक अच्छा कंटेंट , क्रेडिबलिटी और प्रेजेंटेशन से प्रभाव बदल सकता है।   कॉलम साइज से लेकर  तथ्यों और चित्रों की प्रस्तुति ,  विजुअलाइजेशन का ज़रूरी  हिस्सा है। यह सब उनके सभी  प्रयोगों और अमर उजाला के नये स्टाइल में भी शामिल है जो यशवंत व्यास की पारखी परख की देन है।  यशवंत को अपने शुरुआती कॅरियर के जमाने से ही कंटेंट के साथ-साथ लेआउट और डिजाइनिंग  उनके प्रयोगात्मक दृष्टिकोण के लिये जाना जाता है।वे बखूबी जानते हैं कि उपलब्ध संसा धनों और मौजूदा कर्मियों से बेहतर आउटपुट कैसे निकाला जाता है। यह एक लीडर की क्वॉलिटी है जो उनमें है। यशवंत व्यास को पता है कि सही जूते में ही जब सही पैर जायेगा तो संतुलन अपने-आप ही बन जायेगा। उनकी देखरेख में कई ब्रांडिंग कैंपेन बने जिन्हे  पाठकों ने  सराहा ।

साहित्य और पत्रकारिता में कैसे सामंजस्य होता है, इसका जवाब यशवंत व्यास की साहित्यिक रचनाओं से मिलता है। वे साहित्य को अभिव्यक्ति का एक माध्यम मानते हैं।  अब तक उनकी 11 किताबें आ चुकी हैं जो अलग-अलग फ्लेवर लिये हुए हैं।  यारी दुश्मनी, तथास्तु, रसभंग और नमस्कार सहित उनके कई लोकप्रिय कॉलम रहे हैं।

यशवंत व्यास कई किताबें लिख चुके हैं, जिनमें पत्रकारिता पर ‘अपने गिरेबान में’ और ‘कल की ताजा खबर’ प्रमुख मानी जाती हैं। उनके दो उपन्यास ‘चिंताघर’ और ‘कॉमरेड गोडसे’ पुरस्कृत हो चुके हैं। इसके साथ ही वे एक आला दर्जे के व्यंग्यकार भी है। उनके व्यंग्य संग्रह ‘जो सहमत हैं सुनें’, ‘इन दिनों प्रेम उर्फ लौट आओ नीलकमल’, ‘यारी दुश्मनी’ और ‘अब तक छप्पन’ को लोगों ने काफी सराहा है। उन्हें एक अलग पहचान दी उनके अमिताभ बच्चन के ब्रांड विश्लेषण पर लिखी किताब ‘अमिताभ का अ’ ने। साथ ही उनकी कॉरपोरेट मैनेजमेंट पर हिन्दी-अंग्रेजी में लिखी किताब ‘द बुक ऑफ रेज़र मैनेजमेंट-हिट उपदेश’ भी काफी पसंद की गयी।

उन्हें राष्ट्रीय पत्रकारिता फेलोशिप से सम्मानित किया जा चुका है। डिजिटल मीडिया में शुरुआत से  ही सक्रिय  रहे हैं।  साथ ही वह अंतरा इन्फोमीडिया के सह-संस्थापक हैं, जो मीडिया को समर्पित एक बहु-उद्देशीय संस्था है जो कई प्रकाशनों और  विशेष परियोजनाओं पर काम कर रही है। वह वरिष्ठ नागरिकों और नई पीढ़ी के बीच एक पुल बनाने के लिये एक विशेष परियोजना गुल्लक पर भी काम कर रहे हैं।  और कई अन्य प्रयोग भी उनके कामों की फेहरिस्त में शामिल हैं।  फेम इंडिया-एशिया पोस्ट मीडिया सर्वे 2017 में यशवंत व्यास को भारतीय प्रिंट मीडिया के एक प्रमुख सरताज के तौर पर पाया गया है।