Monday, May 18, 2020

वो जो रस्किन बॉन्ड है !


आलेख 
जवाहर चौधरी 


रस्किन बॉन्ड का नाम मेरी उम्र के लोग भी बचपन से सुनते आ रहे हैं । बहुत से लोग उन्हें कहानी वाले बाबा भी कहते हैं । खूब कहानियाँ लिखी हैं उन्होने, खासकर बच्चों के लिए । 19 मई 1934 को भारत में ही जन्में थे रस्किन । आजादी के बाद वे भारत में ही रहे । माता-पिता गोरे, इंगलेंड से थे सो देखने में वे विदेशी लगते हैं लेकिन हैं भारतीय, और भारतीयता से भरे हुए भी । हिमाचल प्रदेश के कसौली में पैदा हुए थे सो पहाड़ी जीवन और प्रकृति उनकी रचनाओं में जीवंत हो कर आते हैं । इस समय यानी 19 मई 2020 को रस्किन 86 वर्ष के हैं और अभी भी काफी सक्रिय हैं । पिछले दिनों लिटरेरी फेस्टिवल में इंदौर आए थे वे और पूरी ऊर्जा से अपनी उपस्थिती दर्ज करवा रहे थे । रस्किन अविवाहित हैं और जाहिर है दैनिक जीवन में कुछ कठिनाइयों के साथ गुजर करते होंगे, खासकर इस उम्र में ।
रस्किन जब सत्रह साल के थे उनका पहला उपन्यास ‘रूम ऑन द रूफ’ छपा था । इसके लिए 1957 में उन्हें जॉन लिवेलीन राइस पुरस्कार मिला था । बाद में अनेक बड़े सम्मान और पुरस्कार रस्किन को मिले । जिसमें भारत का प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार 1992 में, पद्मश्री-1999 और पद्मभूषण-2014 उल्लेखनीय हैं । उनके सुदिर्ध काम और योगदान को रेखांकित करने के लिए उन्हे लाइफ टाइम अचिवमेंट अवार्ड -2017 में दिया गया ।
रस्किन ने अनेक उपन्यास, कहानियाँ व निबंध लिखे हैं । कविता की उनकी चार पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं । उनकी लगभग एक सौ तीस किताबें प्रकाशित हैं अब तक । उनकी रचनाओं पर कई फिल्में भी बनी हैं । रस्किन की किताबें प्रायः पाठकों के बीच पहली पसंद होती हैं ।
एक बड़े लेखक का अध्ययन कक्ष प्रायः हमारी जिज्ञासा का सबब होता है । रस्किन कहाँ बैठ कर लिखते हैं । कब लिखते हैं । उनका कमरा कैसा है । बड़े लेखक का अध्ययन कक्ष भी भव्य होता होगा !! लेकिन यहाँ फोटो में रस्किन अपने अध्ययन कक्ष में दिखाई दे रहे हैं । इसे गौर से देखिए, एक बहुत साधारण सा कक्ष है जिसमें रखी सारी चीजें बहुत समान्य हैं । लगता है हमारा अपना ही टेबल और उस पर रखी बेतरतीब किताबें । पास में पड़ा हुआ एक साधारण सिंगल बेड बिस्तर है जिस पर औढने बिछाने की वही चादरें हैं जो हर दूसरे आम घर में दिखाई देती हैं । लकड़ी के दो सादे कस्बाई शेल्फ ठुके हुए हैं जिन पर अखबार बिछा कर समान रख हुआ है । टेल्कम पावडर, तेल की बोतल और कुछ दवाइयाँ भी दिखाई दे रही हैं । दीवार पर क्लिप से कार्य सूची टंगी हुई है । दोनों शेल्फ के बीच बहुत सी चिपकियाँ है जो यादी की का काम करती होंगी । पलंग के नीचे एक पुराना बक्सा है लोहे का । इसे देख कर बावर्ची फिल्म की याद आ रही है । जिसमें घर के मुखिया हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय अपने पलंग के नीचे लोहे बक्सा अंत तक दबाए रखते हैं । टेबल किताबों और फाइलों से इतनी भरी पड़ी है कि रस्किन को पलंग पर बैठ कर जरा सी जगह में लिखना पड़ रहा है । शायद उन्हें अपनी इस बेतरतीबी का ख्याल है इसलिए फोटो खींचने पर असहमति के तीव्र भाव उनके चेहरे पर साफ हैं । दो मनी प्लांट लगे हैं, शेल्फ पर किसी देवी की तस्वीर (पेंटिंग) रखी है दीवार पर भी दो चित्र हैं और एक कछुआ भी । पूरी तरह से एक मध्यवर्गीय समान्य भारतीय का कमरा है । कहीं से भी इसमें इंगलेंड या आधुनिकता की घुसपैठ दिखाई नहीं दे रही है । न ही ऐसी कोई सुविधाएं नजर आ रही हैं जो एक बड़े लेखक को अलग से रेखांकित करती हैं । कहते हैं एक सफल आदमी के पीछे औरत का हाथ होता है जो प्रायः उसकी पत्नी होती है । यहाँ पत्नी नहीं है और कमरा अस्तव्यस्त है तो जाहिर है उसका हाथ भी नहीं है । लेकिन रस्किन सफल है तो वो क्या है जो उन्हें रस्किन बॉन्ड बनाता है !!
शायद इसका जवाब बहुत पहले महाभारत में दिया गया है । अर्जुन को कुछ नहीं दिखता सिवा चिड़िया की आँख के । लेखक जो सुविधाओं में अपनी सफलता ढूंढते हैं वो भ्रम में हैं । बंगला लेखक शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ने भी अपना पहला उपन्यास सत्रह साल की उम्र में झड़ियों के बीच बैठ कर लिखा था क्योंकि घर में विभिन्न कारणों से वे लिख नहीं सकते थे । लक्ष्य हो, लगन हो तो बाहरी सुविधा/असुविधा का खास महत्व नहीं रह जाता हैं । सुविधाएं ज़्यादातर मामलों में हमें भटकाती हैं और आलसी बनती हैं । किसी ने ठीक ही कहा है कि आराम, सुविधा और आलस्य के कारण हम वह भी नहीं कर पाते हैं जिसको करने में हम दक्ष या योग्य हैं ।

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