Tuesday, July 30, 2024

बैंकिंग परिवेश का जीवंत उपन्यास


 


यों देखा जाये तो आज के जीवन में बैंक से हमारा जुड़ाव पहले से कहीं अधिक है। बावजूद इसके कि बैंक के अधिकांश काम अब ऑनलाइन हो गए हैं। बैंक में जाने की जरूरत अब पहले से कम हो चली है। बच्चे बूढ़े, कामवाली बाईयाँ, फेरी वाले, शिक्षित और अशिक्षित सबके पास स्मार्टफोन है। और ज्यादातर लोग ऑनलाइन पेमेंट कर रहे हैं। लेकिन 40 50 साल पहले ऐसा नहीं था। बैंक में प्रवेश करने की हिम्मत सब में नहीं थी। आम आदमी बैंक के दरवाजे पर खड़ा होकर उसके तिलस्म को महसूस करता था। बैंक के अंदर जो चल रहा होता था वह सब को समझ में नहीं आता था। बड़े-बड़े लेजर रजिस्टर, जिन्हें सामान्य तौर पर आम आदमी देख भी नहीं पाता था, उनको उलटते पलटते कर्मचारी अपने आप लोगों की नजर में विशेष हो जाते थे। इस जादुई वातावरण को जानने समझने की जिज्ञासा प्रायः हर एक में होती थी। प्रभाशंकर उपाध्याय जी का उपन्यास 'बहेलिया ' हमारी इन तमाम जिज्ञासाओं को शांत करता है।

प्रभाशंकर जी वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं और उनके अनेक व्यंग्य संग्रह, लघु कथा संग्रह, व्यंग कथाएँ और हास्य कथाएँ आदि प्रकाशित है। अपने सार्थक लेखन के लिए वे राजस्थान की अनेक संस्थाओं से पुरस्कृत व सम्मानित हैं । वे बैंक सेवा में रहे हैं और विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तरदायित्व का निर्वाह किया है । बैंकिंग क्षेत्र में उनका सक्रिय अनुभव उपन्यास 'बहेलिया' को समृद्ध करता है। उनके पास कथा कहने का कौशल और एक सरल भाषा है। उपन्यास पढ़ते हुए घटनाएं फिल्म की तरह आँखों के सामने चलती हैं। लगता है आप खुद बैंक की शाखा में बैठे हैं या कर्मचारी हैं या फिर चश्मदीद गावह। पूरे उपन्यास में पाठक अपने आप को बैंक में उपस्थित महसूस करता है। उपन्यास दैनिक डायरी की तरह बैंक की कार्य पद्धति को नोट करता चलता है। अन्य संस्थाओं की तरह यहाँ भी सब तरह के लोग हैं, राजनीति हैं , चालाकियाँ हैं, टाँग खींचने की प्रवृत्तियाँ भी हैं । इन्हीं के बीच यूनियन के नेता हैं जो शह और मात का खेल खेलते रहते हैं। घटनाएँ रोचक और मजेदार हैं। और जैसा कि प्रभाशंकर जी ने लिखा है, ये घटनाएँ सच्ची भी हैं । भाषा सीधी सरल और संप्रेषण योग्य है। बैंकिंग परिवेश से जो जरा भी परिचित है, उसे उपन्यास शुरू से ही पकड़ लेता है।
लेखक ने जो अनुभव जीवन भर नौकरी करते हुए अर्जित किये वह हमें मात्र डेढ़ सौ पेज से प्राप्त हो जाते हैं । लेजर और रजिस्टरों से शुरू हुई बैंकिंग व्यवस्था को प्रभाशंकर जी ने कंप्यूटर युग पर लाकर विराम दिया है। इससे बैंकिंग व्यवस्था के विकास का क्रम भी हमको देखने को मिलता है।
उम्मीद है पुस्तक पढ़ी जाएगी और पाठकों द्वारा पसंद भी की जाएगी।

उपन्यास - बहेलिया
लेखक - प्रभाशंकर उपाध्याय
प्रकाशक - इंक पब्लिकेशन
संस्करण - 2023
मूल्य - ₹250/-