Tuesday, June 25, 2013

हम अभिषप्त समूह

                           

आलेख 
जवाहर चौधरी 


इनदिनों दयानंद सरस्वती याद आ रहे हैं। जब वे बालक थे एक बार शिवाले में अन्य भक्तों के साथ बैठे आराधना कर रहे थे। देर रात उन्होंने देखा कि एक चूहा शिवलिंग पर चढ़-उतर रहा है और चढ़ाया प्रसाद खा रहा है। उन्हें आश्चर्य हुआ कि भगवान अपने उपर उछलकूद कर रहे चूहे को हटा नहीं पा रहे हैं! यदि ऐसा है तो वे सर्वशक्तिमान कैसे हुए!! ऐसे भगवान अपने भक्तों की रक्षा कैसे कर पाएंगे जो स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर पा रहे हैं!! उस वक्त चैतन्य-बोधि बालक दयानंद के मन में मूर्तिपूजा और अन्य अनेक धार्मिक मान्यताओं व व्यवस्थाओं पर प्रश्न उठे। बाद में अनेक अवसर आए जब उनका शास्त्रार्थ पंड़ितों से हुआ किन्तु उनके संदेहों और प्रश्नों का समाधान नहीं हुआ अपितु पाखण्डी समाज ने उनसे बैर बांध लिया। जैसा कि हम जानते हैं कि आर्य समान के इन संस्थापक की राजस्थान दौरे के समय विष दे कर हत्या कर दी गई।
बहरहाल, उनके वे प्रश्न अभी अनुत्तरित ही हैं। समाज वैसे ही भेड़चाल से चलता आ रहा है। जैसा कि जनमानस की प्रवृत्ति है, निश्चित ही तीर्थयात्रा से पहले लोगों ने ज्योतिषी से अच्छा मुहूर्त निकलवाया है, यात्रापूर्व की पूजा की है, ग्रह-चैघडिया, शुभ-लाभ, दान-पुण्य आदि हर बात को साध कर घर से निकले थे । आज भी पंडितों-बाबाओं की चक्की के साथ घूम रहा हमारा समाज अंधआस्था की मोटी परत के नीचे कुछ भी सोचने-समझने की क्षमता खो कर दयनीय स्थिति में है। हजारों लोग इस आपदा में अपनी जान गंवा चुके हैं किन्तु अन्धविश्वास अक्षत है। धर्मसमर्थक इस पर दंभ कर सकते हैं, लेकिन यह चिंता का विषय होना चाहिए। जो किसी तरह बच आए हैं उनका भी लौट कर पूजा-पाठ, कथा-भागवत में व्यस्त दिखाई देना तय है।
हाल ही में प्रयाग कुंभ मेले से हिन्दू समाज लाखों साधु-संतों के दर्शन कर धन्य हुआ है। यह समाचार कितना दुखद है कि केदारनाथ और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में साधुओं ने जम का लूटपाट की!! क्षेत्र से बाहर निकल भागने की जुगत में लगे साधुओं की तलाशी में करोड़ो रुपए नगद और सोने के जेवर बरामद किए जा रहे हैं!! केदारनाथ मंदिर की सारी दान पेटियां तोड़ी जा चुकी हैं जिनमें हजारों रुपए होने का अनुमान व्यक्त किया गया है! मंदिर के पास ही स्टेट बैंक की शाखा पूरी लूटी जा चुकी है जिसमें पांच करोड़ से अधिक नगद राशि थी!

प्रश्न यह है कि एक तरफ तो आस्थाएं इतनी गहरी हैं कि प्रलय से भी हिलती नहीं हैं और दूसरी तरफ कुछ लोग धर्म की नब्ज को इस तरह नापे हुए हैं कि बिना डरे भगवान की नाक के नीचे सब कुछ करते रहते हैं!! वही साधु लोग, सुना है कि लाखों की संख्या में हैं और वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं, वे इस आपदा में कहां थे !? जो सिंहस्थ और कुंभ मेलों में अपने लिंग से बड़े बड़े पत्थर खींचते दहाड़ते रहे हैं, क्या वे अपने हाथ-पैर के बल से श्रद्धालुओं को बचाने नहीं आ सकते थे!! आर्थिक दृष्टि से निष्क्रिय, और जिनका अस्तित्व श्रधालुओं की आस्था पर निर्भर है, वे इस समय मुंह छुपाए कैसे बैठे रहे !! सेना के जवान रातदिन जुटे नहीं होते तो लाखों लोगों की गत कीड़े मकोड़ों सी हो जाती। यदि प्रलय का ये पानी हमारी चेतना को भिगोता नहीं है तो मानना चाहिए कि हम अभिषप्त समूह हैं।

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