Wednesday, June 17, 2015

वेलकम विनाश !

                 

आलेख 
जवाहर चौधरी 


मुझे याद है उन्नीस सौ सत्तर-इकहत्तर के दिन थे जब देश  में हमारी बढ़ रही जनसंख्या की चिंता सुर्खियों में आ गई थी। हालाॅकि उस समय जनसंख्या करीब सत्तवन करोड़ ही थी, लेकिन जनसंख्या की रफ्तार को समझ लिया गया था। पत्र-पत्रिकाओं में खूब लेख छप रहे थे। ‘जनसंख्या विस्फोट’ के खतरों पर बहसें थी और माल्थस आदि के हवाले से कहा जा रहा था कि अगर हमने अभी कुछ नहीं किया तो प्रकृति अपने तरीके से जनसंख्या नियंत्रित करेगी किन्तु वह भयानक होगा। विद्वान बता रहे थे कि आने वाले दशकों में हमें कितना अन्न, कपड़े, घर और रोजगार की जरूरत पड़ेगी। कितने स्कूल और अस्पताल चाहिए होंगे। यह भी बताया जा रहा था कि जनसंख्या अधिक हुई तो इंसानों को घोड़ों की तरह खड़े खड़े सोना पड़ेगा। कुछ अतिवादियों का मानना था कि जनसंख्या रोकी नहीं गई तो लोगों को नरमांस खाना पड़ सकता है। 
                         सौभाग्य से विज्ञान ने हमारा साथ दिया और आज जब देश की जनसंख्या सवा सौ करोड़ है और  हालात इतने बुरे नहीं हैं जितनी  की कल्पना की गई थी। अनेक कमियों के बावजूद देश मजबूत हुआ है, हमारा लोकतंत्र न केवल दुनिया का बड़ा लोकतंत्र है अपितु श्रेष्ठ भी है। अब तो यह भी मानना होगा कि जनता परिपक्व हो गई है और सरकार पर केवल विपक्ष ही नहीं वह भी निगाह रखती है। शिक्षा का प्रतिशत बढ़ा है, प्रतिव्यक्ति आय बढ़ी है, मीडिया की पहुंच आखरी आदमी तक बन गई है। लेकिन अफसोस तूफानी गति से बढ़ रही जनसंख्या को लेकर देशव्यापी सन्नाटा है।
1975-76 में जब जनसंख्या वृद्धि की चिंता चरम पर थी, संजय गांधी ने जनसंख्या नियंत्रण के नेक इरादों से कुछ कठोर कदम उठाए। परंपरावादी सोच के चलते लोगों ने इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। विरोध हुआ तो दबाव भी बनाया गया। अगले चुनाव में अन्य के साथ इस मुद्दे को भी विरोधियों ने भुना लिया। कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। किन्तु ज्यादा दुखःद यह है कि उसके बाद राजनीतिक दलों ने जनसंख्या नियंत्रण का नाम लेना भी बंद कर दिया। डर ने एक जरूरी सरकारी नीति को नितांत स्वैच्छिक बना दिया। उस पर आश्चर्यजनक यह कि कुछ सिरफिरे-मूढ़ नेताओं ने आठ-दस बच्चे पैदा करने के लिए उकसाना शुरू कर दिया ! 
                      आज हर बात की चिंता है, हर छोटे-बड़े मामले पर घरने प्रदर्शन  हैं। कई कई महात्मा गांधी पैदा होने की कोशिश  में हैं और दिल्ली में मैदान पकड़ने की फिराक में रहते हैं। लेकिन जनसंख्या को लेकर कोई कुछ नहीं बोल रहा है। वैज्ञानिक बता रहे हैं कि भारत 2030 में 145 करोड़ के साथ दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा, यानी चीन से भी आगे। 2050 में भारत की जनसंख्या 160 करोड़ के आसपास होगी। अभी 125 करोड़ में दुनिया का हर छटवा आदमी हिन्दुस्तानी है। आप देख सकते हैं कि हर जगह भीड़ है। बाजार हों, रेल्वे स्टेशन हो, सड़क हो, होटल-रेस्त्रां हों, स्कूल-कालेज हों, हर जगह भीड़ ही भीड है। यात्रा करना अब नरक भोगने के बराबर है। चिंता होती है कि हम अपने बच्चों के लिए कैसी दुनिया छोड़ कर जा रहे हैं !! 1947 में जब हम आजाद हुए थे तो मात्र पैंतीस करोड़ थे। इस बात को हर कोई भूल चुका है ऐसा लगता है। चीन ने अपनी जनसंख्या के लिए जरूरी कदम उठाए और एक बच्चे की नीति लागू की। आज उसकी वुद्धि नियंत्रण में है। जब हम जनसंख्या बढ़ाने में लगे थे चीन ने अपना ध्यान ताकत बढ़ाने तें लगाया। आज वह अमेरिका के बाद दूसरी महाशक्ति है। हमारे सभी राजनीतिक दलों को देश हित में एक सामूहिक निर्णय ले कर जनसंख्या नियंत्रण की पुख्ता नीति बनाना होगी। यदि शीघ्र ऐसा नहीं हुआ तो हमारी जनसंख्या को बड़े विनाश के लिए तैयार रहना होगा। 

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