Tuesday, June 27, 2017

कवि माया मृग .......इस तरह पढ़ना दुख को !


इस तरह पढ़ना दुख को .........
दुख को जब भी पढ़ना- उलटा पढ़ना !
आखिरी पन्‍ने से शुरु करना
और शुरुआत का संबंध ढूंढ लेना
पहले पन्‍ने पर लिखे उपसंहार से
ये जानकर पढ़ना कि जो पढ़ा, उसे भूल जाना है----।

उलटे होते हैं दुख के दिन
रात भर खंगाले जाते हैं रोशनी भरे लम्‍हे
आंख बंद रखना अगर देखना है सब----।

दुख को फुनगी से काटना                                          पहली कोंपल का हरा सुख--पहला दुख है
पहला सुख निकालना होगा मिट्टी खोद खोदकर
जो दबा रह जाए उसे रहने देना
इसलिए कि इस दबे का ताल्‍लुक बढ़ने से नहीं है
जो दब गया उसे दबते जाना है---बस---।

उलटाकर देखना तकिए के नीचे रखी
पोस्‍ट ना की गई चिट्ठी
चिट्ठी के कागज को उलट कर देखना
कि कहां लिखा था कुछ जो पढ़ना था उसे
कितने शब्‍द उलटे पलटे पर कहां लिखी गई सीधी सी बात----।

दुख में उलटी चलती हैं घड़ियां
वक्‍त लौटता है हर बार पीछे
चादर को कोने से पकड़ना और उलट देना
रात भर जागे दुख को भनक ना लगे
यह उसके सुख के सपनों में सोने का वक्‍त है....!

1 comment:

  1. मायामृग जी की कविता में सदा जीवन दर्शन छुपा होता है उनकी कविता कहीं से भी शुरू हो अंत तक आते आते आशावादी संदेश छोड़ जाती है । जीवन के प्रति प्रेम, और जीवन सौंदर्य उनकी कविताओं की खूबसूरती है ।

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