श्री नरेंद्र शर्मा एक बहुआयामी व्यक्तित्व हैं । उनका
जीवन अनुभव विविधताओं से परिपूर्ण है । अवलोकन
की सूक्ष्म दृष्टि और संवेदना का विस्तृत फ़लक उन्हें
एक गंभीर रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करता है । हिन्दी
के साथ वे उर्दू में भी रचते हैं । कविता और गज़लों के
माध्यम से जीवन दर्शन उनकी विशेषता है ।
यहाँ उनकी ताजा रचनाएँ ।
अवलोकनार्थ प्रस्तुत है ----
ज़िन्दगी ... वरक़ वरक़ ...
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जीवन की इस पुस्तक ने तो बना दिया घनचक्कर,
किसी पेज़ पर पहेलियाँ हैं और किसी पर उत्तर !
सुख और दुःख के एक सरीखे चित्र दिए और पूछा,
लालबुझक्कड़ इन दोनों में बतलाओ दस अंतर !
एक सफ़े पर विज्ञापन था, "किस्मत नई करालो",
"शर्तें लागू" लिखा हुआ था, बेहद छोटे अक्षर !
अनुक्रम के अनुसार कोई भी लेख नहीं खुलता है,
छापने वाले ने डाले हैं उलटे सीधे नंबर !
शीर्षक है "रिश्ते" किताब का, बाइंडिंग कमज़ोर,
वरक़ वरक़ हो जाती है ये चंद रोज़ के अन्दर !
- नरेन्द्र शर्मा
मौसम बदल रहे हैं...
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तनहाइयों से इतना घबराने लगा हूँ मैं
अपने ही अक्स से बतियाने लगा हूँ मैं
बेरोज़गार दिल को कुछ काम तो मिलेगा
सुलझे हुए मसलों को उलझाने लगा हूँ मैं
महफ़िल में दोस्तों का जी ऊबने लगा है
ढलते ही शाम वापस घर आने लगा हूँ मैं
मौसम बदल रहे हैं, बदलेंगे दिन कभी तो
ख़ुद को इसी बहाने बहलाने लगा हूँ मैं
ख़ानाखुराक मेरा बिलकुल बदल गया है
पीता हूँ अश्क़ अब ग़म खाने लगा हूँ मैं
- नरेन्द्र शर्मा
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