परेशान
चित्रगुप्त कर्मचारियों पर झल्ला रहे थे । जीव-गोदाम से अनेक जीव गायब पाए गए हैं
। उनमें सबसे महत्वपूर्ण परसाई का जीव भी दिखाई नहीं दे रहा है । कुछ दिन स्टॉक
चेक नहीं करो तो ऐसी गड़बड़ी होती है । मृत्युलोक कहने भर को ही देवभूमि है । वहां
आते जाते सारे यमदूत भ्रष्ट हो गए हैं वरना इतनी बड़ी गलती कैसे हो सकती है ! रजिस्टर
में साफ साफ इंट्री है परसाई का जीव १० अगस्त १९९५ को यहाँ लाया गया था । जाँच के
बाद पाया गया कि इस जीव को दोबारा धरती पर भेजना उचित नहीं है इसलिए ‘नॉट फॉर
रीसायकल’ केटेगरी में, ताले में बंद करके रखा गया था । लेकिन अब कहाँ हैं किसी को
नहीं मालूम । यमदूतों की लापरवाही दिनोंदिन बढ़ती जा रही है । एक बार भोलाराम के
जीव को भी ये लोग समय पर नहीं ला पाए थे । कितनी बदनामी हुई थी डिपार्टमेंट की ।
अभी तक धरती वाले इसे मुद्दा बना कर नाटक खेलते हैं । उस समय तो मिडिया-मंडी नहीं
थी । राजा हो या मंत्री कोई इस तरह बिकता नहीं था । पैसे वाले गधे-घोड़े ही खरीदते
थे । अख़बारों की खबरें भी खबरें ही हुआ करती थीं । आज अगर स्वर्ग नरक का डाटा लीक
हो जाये तो नीचे ब्रेकिंग न्यूज़ से टीआरपी बढ़ा लेंगे लोग ।
“ए मिस्टर
इधर आओ, तुम कैसे एमबीए हो !! वेयर हॉउस का साधारण सा काम भी ठीक से नहीं होता है
तुमसे ! मुझे लगा था कि प्रथम श्रेणी की डिग्री है तो उसके लायक भी होगे । लेकिन
तुम्हारे जैसा लापरवाह, नाकारा गोदाम चौकीदार पूरी धरती पर भी नहीं मिलेगा । मुझसे
गलती हुई जो मैंने तुम्हारी डिग्री पर भरोसा किया । लगता है तुमने भी नकली डिग्री
बनवा रखी है ! दूत हो, कम से कम तुम्हें तो शरम आना चाहिए ।“ चित्रगुप्त क्रोधित
हुए ।
“सर आप बड़े
हैं, शिक्षा व्यवस्था को कुछ भी कह सकते हैं । राग दरबारी वाले व्यंग्यकार के जीव
ने आपको बता दिया होगा कि शिक्षा व्यवस्था सड़क किनारे पड़ी कुतिया है और बड़ा छोटा कोई
भी उसे लात मार कर चल देता है । गलती किसकी है, चूक कहाँ हुई इसकी जाँच किये बिना
आपने मेरी डिग्री पर संदेह किया । मेरे लिए तो इतने में ही डूब मरने की बात है ।“ यमदूत दुखी हुआ ।
“शिक्षा
व्यवस्था में जो चल रहा है वो भी डूब मरने की बात है । लेकिन कोई मरा आजतक ?! मैं
तुम्हारी जिम्मेदारी की बात कर रहा हूँ । आखिर गायब कैसे हुआ व्यंग्यकार का जीव ? जानते हो अगर वह कहीं पैदा हो गया तो उसका
भी ‘हे राम’ हो जायेगा ।” चित्रगुप्त चिंतित भी हुए ।
“क्षमा
करें श्रीमान, लाखों जीवों का आवगमन होता है यहाँ से । बत्तीस करोड़ का देश पचहत्तर
वर्ष में एक सौ चालीस करोड़ का हो गया । आप जरा वर्क लोड देखिये । कम्पूटर नहीं है,
स्टाफ भी उतना का उतना ही है । हर तीन सेकेण्ड में दो जीव भारत के लिए ही डिस्पेच
करना पड़ते हैं । अगर कीड़े मकोड़ों के जीव न हों तो हमें आपूर्ति करने में पुरखे याद
आ जाएँ । इधर भभ्भड़ मचा रहता है और उधर लोग जश्न मना रहे हैं कि दुनिया में नंबर
वन हो गए !! सुना है ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए उकसाया भी जा रहा है ! पैदाइश-युद्ध
पर उतर आये हैं लोग !” दूत ने अपनी बात रखी ।
“उनकी
मूर्खताओं को बता कर तुम अपनी गलती नहीं छुपा सकते दूत । व्यंग्यकार का जीव कोई
मामूली जीव नहीं है, फ़ौरन ढूंढो उसे ।“
“चाँद पर
देखता हूँ । इन्स्पेक्टर मातादीन वहीं पड़ा होगा । हो सकता है व्यंग्यकार का जीव
उससे मिलने पहुंचा हो ।“
“ हमारे
पास केवल देवभूमि का ठेका है । जाओ वहीं किसी वैष्णव की होटल में देखो । सारे जीव
उधर ही फिसलते हैं ।”
यमदूत धरती
पर पहुंचा । किसीने कहा कि राजधानी की ओर जाओ । व्यंग्यकारों की कलम इनदिनों सरकार
के नाक-कान छेदन में लगी है । हो सकता है वहाँ मिल जाये ।
कुछ देर
में ही यमदूत की नजर एक भीड़ पर पड़ी । व्यंग्यकार का जीव मालिक-भक्तों से घिरा हुआ
था । बिना ठोस शरीर की आकृति को लोग भौंचक से देख रहे थे । एक आवाज आई, -- अरे
इनको तो पहचानता हूँ मैं ! ... क्यों तुम वही हो ना ?”
“हाँ मैं
वही हूँ, और देख रहा हूँ तुम भी वही हो ।“ जीव ने बिना मुस्कराए कहा ।
“तुम तो हर समय टांग खींचते थे ! अब देखो, देखो
कितना विकास हो गया है ! कितने सारे हवाई अड्डे, कितनी सारी उड़ानें, रेलें
सुपरफ़ास्ट, सड़कें देखो एक सौ पचास की स्पीड में दौड़तीं कारें, बड़ी बड़ी मूर्तियाँ,
बड़े बड़े देव, बड़े बड़े अवतारी, बड़ी पूजाएँ, बड़े पुजारी, बड़ा बजट । टीवी देखो, अख़बार
देखो सरकार ही सरकार देखो । मालिक का विमान साढ़े आठ हजार करोड़ देखो और विपक्ष के
पेट में लाइलाज मरोड़ देखो । ... कैसा लग
रहा है ? ... खुश नहीं हुए ना !?”
“अच्छा तो सब
अमीरों के लिए है ! विकास कम हवस ज्यादा है !! अमीर कितना उड़ेंगे, कितनी कार
दौड़ाएँगे, कितना पूजेंगे भगवान को ! अमीर मालिक हो गए देश के ! उन्होंने सिस्टम को
टम टम बना लिया है अपना ! “ जीव बोला ।
“दोस्ती
में कोई मालिक नहीं कोई टम टम नहीं । सारे प्रगतिशील हैं ।“
“ओह !
प्रगतिशील हैं !! दाढ़ी रखने से प्रगतिशील हो जाते हैं क्या ! बुद्धिजीवी कौन होते हैं समझते हो ?“
“हाँ हाँ,
पता है । ... समस्या होते हैं ।“
“औंधी
खोपड़ी हो अभी तक ! समाधान को समस्या कहते हो !?”
“हम जिसे
समस्या मानते हैं वो समस्या है । और विकास पथ में बुद्धि या बुद्धिजीवियों का कोई काम
नहीं है ! ताली-थाली बजवा कर चेक कर लिया है मालिक ने । बुद्धिजीवी व्यवस्था के शत्रु
होते है । दीर्धकालिक योजना से इन्हें नष्ट किया जाना है । बुद्धिजीवी मुक्त भारत
! कितना सुन्दर होगा ! मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास, हम करेंगे इनका समूल
नाश ।“
“लोकतंत्र की
छड़ी जनता के पास होती है । और उसकी मार में आवाज नहीं होती है ।“ जीव ने याद
दिलाया ।
“लोकतंत्र
का पाठ कोर्स से हटा दिया गया है ? जब नयी पीढ़ी पढेगी नहीं तो जानेगी कैसे ! जब प्रजा
को एक ही पार्टी, एक ही मालिक को चुनना है तो चुनाव और लोकतंत्र की जरुरत क्या है
!” मालिक-भक्त बोला ।
“लोग मूर्ख
हैं ! दूसरी पार्टी और नेता के बारे में नहीं सोचेंगे ।“ जीव ने कहा ।
“जो सोचेगा
देशद्रोही माना जायेगा । जरुरत पड़ी तो नए कानून और नयी जेलें बनायीं जाएँगी ।“
“तो गरीब के
ही वोट नहीं लोगे ! ... गरीब के लिए कुछ किया है ?”
“गरीबी हटा
दी गयी है । मीडिया में एक भी शब्द गरीब के बारे में नहीं मिलेगा ।... मालिक ने गरीब
को दूसरा सम्मानजनक नाम ‘भूमिपुत्र’ दिया है । अब गरीब भूमिपुत्र है ।“
“इससे उनके हालात तो बदलेंगे नहीं ! क्या गरीबों को मालूम है कि उन्हें भूमिपुत्र कहा
जा रहा है ?”
“हाँ उन्हें
मालूम है और वे बहुत खुश हैं । भड़काने वाले न हों तो गरीब जरा से में राजी रहते
हैं । उन्हें पहली बार सम्मान मिला है । सम्मान
मिल जाये तो वे आधी मजदूरी से खुश हो जाते हैं, मजे में भूखे भी रह लेते हैं । जुमले हमेशा फर्टीलाइजर का काम करते हैं । मालिक
जब कहते हैं कि ‘मित्रो मैं भी भूमिपुत्र था’ तो फसल दूनी उगने लगती है वोटों की ।
लोकतंत्र की रक्षा का मतलब वोटों की रक्षा ही तो है । देशभक्त सुनहरे कल की ओर बढ़
रहे हैं । “
“बड़े
होशोयर हो ! महंगाई का ‘म’ भी नहीं बोल रहे हो !! रुपया लुढ़क रहा है !” जीव को
गुस्सा आने लगा ।
“रुपया वहीं
है डालर उछल रहा है । डालर हमारी समस्या नहीं है । और महंगाई कहाँ है !? अगर महसूस
नहीं करो तो महंगाई है ही नहीं । महंगाई तो एक भ्रम है जो राष्ट्रद्रोहियों ने
फैला रखा है । जो प्याज नहीं खाता उसके लिए प्याज महँगी नहीं है । जो भी महंगा लगे
वो मत खाओ । जिसे तुम महंगाई समझ रहे हो दरअसल वो विकास है । विकास गर्व की बात है । रही भूमिपुत्रों की बात
तो उन्हें इतना अनाज मुफ्त दिया जा रहा है जितने में वो हर चुनाव तक जिन्दा रह लें ।“
“रोजगार का
क्या ? चुनाव के बाद उन्हें भूख नहीं लगेगी ?”
“बता दिया
है उन्हें । हानि-लाभ, जीवन-मरण, जस-अपजस विधि हाथ । यह ईश्वरीय नियम है, इससे ऊपर
कोई जा सकता है ?“
“भ्रष्टाचार
करने वाले तो साधु हो गए ?! चौतरफा ईमानदारी फल फूल रही है !”
“अरे, ...
भूल गए ! ... ‘सदाचार का ताबीज’ । तुमने ही तो बताया था कभी । पूरे एक सौ चालीस
करोड़ भाइयों और बहनों के लिए बनवाये जा रहे हैं । दोस्तों को ठेका दे दिया गया है
। मुफ्त मिलेंगे सबको । विपक्ष बहुत बोलता
है उसको एक बूस्टर तावीज भी बांधा जायेगा ।“
“झूठ की
रेत में सिर घुसा लोगे तो क्या दिखोगे नहीं किसीको !?” जीव ने फटकारा ।
तभी एक और
भड़कती आवाज आई, बोला – कौन हो जी तुम !? क्या उलजलूल सवाल पूछे जा रहे हो ! लगता
है लाल वाले हो । तुम ऐसे नहीं सुधरोगे । ... ये जागरण का समय है रे, जागो-जागो । नगर
नगर जागो, डगर डगर जागो । कस्बे, गाँव और टोले जागो । उठो जागो कि समय आ गया है उत्तर
देने का ।“
“चिल्लाओ
मत, सब जाग चुके हैं । और उन्हें पता है कि समय आ गया है उत्तर देने का ।“ जीव ने
भी चिल्ला कर जवाब दिया ।
भीड़ में
गुस्सा बढ़ने लगा । जीव के साथ शरीर होता तो पक्के में इस बार मॉब-लीचिंग होती या
इंकाउंटर जैसा कुछ । मौका देख कर दूत जीव को दबोचा और यमलोक की ओर उड़ गया ।
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