Monday, February 8, 2010

* बेटों के हाथ में मां की मौत की लकीर !

आलेख 
जवाहर चौधरी 



दिल्ली देश की राजधानी ही नहीं आधुनिक नगर भी है । यहां लोग शिक्षित , उद्यमी , सम्पन्न और दूसरों से प्रायः हर दृष्टि से आगे दिखाई देते हैं । राजधानी होने के कारण दिल्ली वालों में अन्यों की तुलना में जागरूकता भी अधिक है । पुलिस और कानून व्यवस्था अन्य राज्यों की अपेक्षा चुस्त-दुरूस्त है । बावजूद इनके पिछली साल की यह खबर दुखद है कि गाजियाबाद में तीन भइयों ने तांत्रिकों के चक्कर में अपनी मां की हत्या कर दी । चैंकाने वाली बात यह है कि इन भाइयों में एक इंजीनियरिंग का छात्र है दूसरा एमबीए की पढ़ाई कर रहा है और तीसरा बारहवीं की परीक्षा दे चुका है !! इन लोगों ने हत्या के लिये अपने एक चचेरे भाई की मदद भी ली , वह भी शिक्षित है । बाद में तांत्रिक के इस सुझाव पर कि मां को वापस जीवित करने के लिये चार लड़कियों की बलि दी जाना जरूरी है , भाइयों ने अपनी बहन और उसकी तीन ननदों को यह कह कर बुलवाया कि मां की तबियत ठीक नहीं है फौरन आ जाओ । उनके आते ही चारों भाइयों ने इन लड़कियों पर दरातों से जानलेवा हमला किया किन्तु चीख-पुकार से भीड़ जुट जाने के कारण वे बच गईं और गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचाईं गईं । चारों भाई दबोचे गए और अब सलाखों के पीछे हैं ।




यह घटना हमारे सामने कई सवाल खड़े करती है । आखिर वो कौन सी स्थितियां हैं जो हमारे युवाओं को तांत्रिकों के चक्कर में डालती है ! उपरोक्त घटना किसी पिछड़े इलाके में अपढ़ लोगों के बीच घटती हुई होती तो इसके कारण तय करना कठिन नहीं था । दिल्ली में रहते हुए , इंजीनियरिंग और एमबीए जैसी विज्ञान सम्मत पढ़ाई करने वाले तांित्रकों की शरण में चले जांए और मां की हत्या तक कर दें !! यह चिंता और चिंतन के लिये उच्च प्राथमिकता वाला विषय है । यह जानना जरूरी है कि वो कौन सा भय है जो हमारे युवाओं को तंत्र-मंत्र, अंगूठी-नगीनों और छू-छा की ओर ले जाता है । हमारी शिक्षा में जरूर कोई कमी है जो डिग्रियां तो दे रही है लेकिन विज्ञान का ज्ञान या वैज्ञानिक दृष्टि नहीं । टीवी, कम्प्यूटर, आईपाड, लेपटाप, मोबाइल, बाइक जैसे विज्ञान के चमत्कारों से लदी-फंदी रहने वाली पीढ़ी कैसे अन्धविश्वास के दलदल में फंस रही है ।

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