Tuesday, May 11, 2010

Matrubhoomi: A Nation Without Women

आलेख 
जवाहर चौधरी 


मातृभूमि
ए नेशन विदाउट वुमन



                    भारत में कन्या भ्रूण हत्या का प्रसंग सदियों पुराना है । इसके कारणों को दोहराने की आवष्यकता नहीं है । पिछली जनगणना में हमारे अनेक राज्यों में स्त्री-पुरुष अनुपात में चिंताजनक अंतर सामने आया है । पंजाब और हरियाणा में तो लड़कियों की इतनी कमी है कि वहां दक्षिण भारत और अन्य जगहों से लड़कियां खरीद कर विवाह करने के प्रकरण सामने आए हैं । आज भी लड़कियों को मारने की प्रथा बंद नहीं हुई है । फर्क केवल यह हुआ है कि भ्रूण परीक्षण से पता करके अब उन्हें जन्म से पहले ही मार दिया जाता है ।

                 ‘मातृभूमि - ए नेशन विदाउट वुमन’ मनीष झा की 2005 में रिलीज, इस मायने में एक महत्वपूर्ण फिल्म है कि यह कन्या हत्या की इस समस्या को गहरे असर के साथ दर्शक के मन में उतार देती है । फिल्म का आरंभ प्रसव के दृश्य से होता है । लड़की पैदा होती है जिसे दूध के तपेले में डुबो कर मार दिया जाता है । यह प्रथा, विकृत प्रवृत्ति और मानसिकता का प्रतिनिधि दृश्य आक्रोशित करने वाला है ।
गांव में पांच लड़कों और अधेड़ जमींदार पिता का एक परिवार है । लड़के विवाह योग्य हैं पर पंड़ित द्वारा आसपास दूर दूर तक छान मारने पर भी कोई लड़की उपलब्ध नहीं है । ब्लू फिल्म के शौकीन गांव में हालात इतने बिगड़े हुए हैं कि छोटे लड़के यौन शोषण का सहज शिकार हैं, यहां तक कि गाय-भैंस और बकरियों को भी नहीं छोड़ा जाता है । बाप दहेज की लालच में लड़के को लड़की के कपड़े पहना कर ब्याहने से नहीं चूक रहे हैं । पूरा गांव स्त्री की छाया से भी महरुम है ।

                ऐसे में पास ही कहीं एक लड़की कलकी का पता चलता है जिसे पिता ने उसे बहुत छुपा कर पाला है । पंडित जमींदार को यह सूचना देता है । बात आगे बढ़ती है पर लड़की का पिता एक लाख रुपए के प्रस्ताव के बावजूद जमींदार के बड़े लड़के से ज्यादा उम्र का होने के कारण अपनी लड़की का विवाह नहीं करता है । लेकिन पांच लाख व पांच गाएं ले कर पांचों लड़कों से लड़की ब्याह देता है । ससुराल में कलकी को अपने पतियों के साथ ससुर को भी झेलना पड़ता है । सप्ताह में हर दिन कलकी को एक के साथ सोना होता है । सारे पुरुषों में सबसे छोटा बेटा सुदर्शन और स्वभाव में मानवीय होने के कारण कलकी उसे पसंद करने लगती है । यह बात अन्य भाइयों और पिता को खटकती है और षड़यंत्र पूर्वक वे उसकी हत्या कर देते हैं । जाहिर है अब कलकी पर इनकी पशुता दूने वेग से आक्रमण करती है ।



                  मौका देख कर वह घरेलू नौकर-लड़के रघु के साथ भागने का असफल प्रयास करती है, फलस्वरुप रघु को जान गंवाना पड़ती है । अब सजा के तौर पर उसे गौशाला में सांकल से बांध दिया जाता है । बारी बारी से ‘मर्द’ उसका यौन शोषण करते रहते हैं । इसबीच गांव के दलित जमींदार के घर नौकर रहे अपने लड़के रघु की मौत का बदला लेने के लिये रात में छुप धावा बोलते हैं और गौशाला में जमीदार की बहू कलकी को बंधा देख उसके साथ बलात्कार कर लौट जाते हैं । कलकी गर्भवती हो जाती है ।

इस खबर से गांव के दलित लोग मानते हैं कि जमींदार के घर पैदा होने वाले बच्चे के बाप वे हैं । बात सामने आती है और सामूहिक संघर्ष में बदल जाती है । इधर जमींदार कुपित हो कर कलकी को मार डालना चाहता है लेकिन नया नौकर, एक लड़का, उस पर चाकू से अनेक वार कर उसकी जान ले लेता है और कलकी को बचा लेता है । अगले दृश्य में कलकी का प्रसव है , लड़की के जन्म से सुखांत होता है ।

                     दरअस्ल यह कहानी भविष्य की, चेतावनी देने वाली कहानी है । यह दुनिया में कहीं भी हो सकता है, लेकिन भारत के संदर्भ में तो है ही । भ्रूणहत्या के मामले में भारत जितना जाहिल और गंवार है उतना शायद ही कोई और देश होगा । किन्तु केवल अशिक्षित और पंरपरावादी लोगों पर दोष मढ़ कर हम या कोई भी, इस पाप से मुक्त महसूस नहीं कर सकते हैं । सैकड़ों वर्ष पुरानी इन परंपराओं के पीछे पुरुषों की कायरता ही प्रमुख है जो अपनी बेटियों का भरण-पोषण और रक्षा करने से बचते रहे हैं ।

                       बात बात में धर्म और संस्कृति को याद करने वाला समाज अपनी ही बच्चियों के मामले में इससे विमुख कैसे हो जाता है ! धर्म में ‘पवित्रता का प्रावधान’ इन हत्याओं के लिए इसलिए जिम्मेदार है कि व्यक्ति पाप करके किन्हीं पूजाओं और दान से इसे ‘धो’ सकता है ! यह धारणा किसने पैठा दी है कि विषेष मुहुर्त में गंगा स्नान करने से पापियों के पाप धुल जाते हैं । या पापी के मरने के बाद भी ब्राहम्ण-भोज और कुछ क्रियाएं करने से उसे स्वर्ग में जगह मिल जाती है । पाप से बचने के प्रावधान पाप को बढ़ाने के उपाय ही हैं । जब तक यह बात समझ में नहीं आती कायरों के समाज में न अपराध कम होंगे न पाप ।

                            फिल्म का सबसे अच्छा पक्ष उसका निर्देशन और फिल्मांकन है । विषय में संभावना होने के बावजूद कहीं भी अश्लीलता नहीं है । मनीष झा की समझ को देख कर आश्चर्य होता है । यदृपि वे कम आयु के, एकदम नौजवान हैं, किन्तु दर्शकों को बार-बार लगता है कि वह श्याम बेनेगल की फिल्म देख रहा है । किसी सामाजिक समस्या पर उद्श्यपूर्ण फिल्म बनाना आज वैसे भी लीक से हट कर चलना है । उस पर विषय की प्रस्तुति ऐसी है कि दर्शक में मन में गहराई तक उसका असर होता है और में वह इस समस्या से खुद को बेहद चिंतित पाता है । फिल्म को अनेक देशी-विदेशी अवार्ड मिले हैं । कलकी के रुप में तुलिक जोशी और जमींदार की भूमिका में सुधीर पांडे अद्भुत हैं । इनके अलावा सभी कलाकारों से मनीष झा ने बहुत सधा हुआ काम लिया है ।

4 comments:

  1. logon ne abhi bhi ladkiyo k prati apni soch aur mansikta nhi badli to wo din door nhi jab har ladki ka yahi hashra hoga. ladkiyo aur aurton k prati badhte apradh iska sanket de rhe hai, aane wale samay me hame gambhir parinam bhugatne honge.

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  2. A girl must follow Maharshi 'Parashuram'.

    When Kalki's father married her off to 5 men. She must have killed the four elder ones to maintain a proper ecological balance.

    Majority of men are hounds and women are emotional fools. They must learn to raise voice against wrongs and must not hesitate in taking right decisions for the betterment of society ( specially women ).

    If the father can kill his youngest son to encourage filth, then why can't a woman kill the elder ones to ensure harmony and a perfect balance?

    Another option-

    She could have taught a lesson to her own greedy father.

    She could have denied marrying with wolves.

    She should have enslaved the five animals (her so called husbands), and should have lived like a Queen and have contributed in a better way to society by discouraging female foeticide and other such issues against women.

    Laaton ke bhoot, baton se kabhi nahi samjhenge.

    Divya

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  3. एक ऐतिहासिक बुराई की ओर आपने ध्यान खीन्चा है . नारी के बिना मानवता कितने दिन जी सकेगी लोग इस पर विचार क्यो नही करते ? आप के चिन्तन को प्रनाम .

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  4. Ane wale kal ki ahet hai ye!
    ese kevel nari hi rok sakati hai.Aaj nari uchch shikchha grehan kar,pashchaya poshak pahen apane ko aadhunik kahalana pasand karati hai per kahi na kahi vah putr ki chah rakhati hai,jisaka phaida udhaker purush apna matalab sadhata hai.

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