आलेख
जवाहर चौधरी
देखने में आ रहा है कि शहरों के आसपास के गांवों और छोटी व पिछड़ी जगहों से आए लोग नगरों का नेतृत्व करने लगते हैं । उनकी जड़ें शहरों में नहीं ] कहीं और होतीं हैं और वे प्रतिनिधित्व कहीं और का करते हैं । इसमें शायद बुराई न हो । हमारे राष्ट्र्ीय नेताओं ने छोटे स्थानों से निकल कर पूरे देश का नेतृत्व किया किन्तु उन्होंने ज्यादातर मामलों में स्थानीय समाज या समूहों की उपेक्षा नहीं की । गांधीजी को ही लें ] आजादी की लड़ाई में वे देश का नेतृत्व कर रहे थे ] वहीं स्त्री शिक्षा ] बाल विवाह ] छुआछूत ] संाप्रदायिकता जैसी ज्वलंत सामाजिक समस्याओं पर उनकी चिंता व सक्रियता कम नहीं थी । फिर आज दिक्कत क्या है !\
आज महानगरों में नेतागिरी चमकाने वालों पर एक नजर डालकर देखिए । वे समारोहों में भाषण करते हैं ] कुरीतियों पर टिप्पणी करते हैं । विकास और सुधार के मुद्दों पर सरकार को गरियाते हैं लेकिन स्वयं जिस समूह ] समाज या जाति से निकल कर आए हैं वहां की बुराइयों के प्रति आंखें मूंदे रहते हैं ! बाल विवाह रोकना है तो सरकार रोके ] कानून काम करे ] पुलिस देखे । हम तो जनभावना और परंपरा के खिलाफ नहीं बोलेंगे । क्या जनप्रतिनिधि होना कुरीतियों का समर्थक होना भी है !! हाल ही में हमारे कुछ नेता खाप पंचायतों की हिमायत में राष्ट्र्पति तक जा पहुंचे ! क्या जनता के कल्याण की जिम्मेदारी सिर्फ संविधान की है !\
नेता ऐसा भाव रखते हैं मानों संविधान से उनका नाता सिर्फ शपथ लेने तक ही था । भले ही स्कूल कालेजों में जा कर वे प्रगतिशीलता की बकवास कर आएं पर अपनी जाति या अपने घर की लड़कियों को नहीं पढ़ाएंगे । जब भी वजह पूछी जाए दांत दिखाते हुए कहेंगे कि हमारे समाज में लड़कियों को पढ़ाने का रिवाज नहीं है । तमाम बड़े नगरों की नाक पर ऐसे नेता बैठे मिल जाएंगे जिनके समाज में चार-पांच साल की लड़कियों के विवाह की परंपरा आज के युग में भी जारी है और वे निर्लज्जतापूर्वक इस ओर से आंख फेरे हुए हैं ! नेता मान कर चलते हैं कि यह सब काम सरकार का है । दुःख की बात है कि जनता भी यही माने बैठी है । कहीं भी नेता से यह सवाल नहीं किया जा रहा है कि आप जो देश की किसी समस्या पर संसद को सफलतापूर्वक मच्छीबाजार बना डालते हैं कभी अपने समूह-समाज की समस्या पर लोगों को मार्गदर्शन देते हैं \- यदि वर्तमान युग में भी हमारे नेता अपने समूह का पिछड़ा नजरिया नहीं बदल पाए हैं तो यह किसके लिए शर्मनाक है \ और क्या हक बनता है उन्हें नगरीय और विकसित समाजों का नेतृत्व करने का \!
बहुत सही मुद्दा है .
ReplyDeleteसाधुवाद.
maza aa gaya aapka blog dekh kar. badhi. kuchh khurak mila karegi ab
ReplyDeleteस्वागत है गिरीश भाई ,
ReplyDeleteआपको देख कर बहुत अच्छा लगा .
यों आप नेट पर छाये रहते हैं .
आप बहुत आगे हैं .कुछ मार्गदर्शन
करते रहियेगा .
नेता ऐसा भाव रखते हैं मानों संविधान से उनका नाता सिर्फ शपथ लेने तक ही था ।
ReplyDeleteबढ़िया लेख लिखा है .......
मेरे ब्लॉग कि संभवतया अंतिम पोस्ट, अपनी राय जरुर दे :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
कृपया विजेट पोल में अपनी राय अवश्य दे ...