सब ठाठ पड़ा रह जावेगा
जब लाद चलेगा बंजारा
धन तेरे काम न आवेगा
जब लाद चलेगा बंजारा
जो पाया है वो बाँट के खा
कंगाल न कर कंगाल न हो
जो सबका हाल किया तूने
एक रोज वो तेरा हाल न हो
इस हाथ से दे उस हाथ से ले
हो जावे सुखी ये जग सारा
हो जावे सुखी ये जग सारा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा
जब लाद चलेगा बंजारा
क्या कोठा कोठी क्या बँगला
ये दुनिया रैन बसेरा है
क्यूँ झगड़ा तेरे मेरे का
कुछ तेरा है न मेरा है
सुन कुछ भी साथ न जावेगा
जब कूच का बाजा नक्कारा
जब कूच का बाजा नक्कारा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा
जब लाद चलेगा बंजारा
धन तेरे काम न आवेगा
जब लाद चलेगा बंजारा
एक बंदा मालिक बन बैठा
हर बंदे की किस्मत फूटी
था इतना मोह खजाने का
दो हाथों से दुनिया लूटी
थे दोनो हाथ मगर खाली
उठा जो सिकंदर बेचारा
उठा जो सिकंदर बेचारा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा
जब लाद चलेगा बंजारा
एक ढीठ उपदेशक
ReplyDeleteअथक प्रवचनकार है
यह समय
कहता है बार-बार
क्या लाया था
क्या ले जायेगा ?
जब सबकुछ यहीं छुटना है
तो अपने होने के इस मोह को
लादकर कहाँ ले जाना होगा ?
कोई जगह ...
कोई मुकाम ...
शायद ...! कैफी आज़मी को मालूम था
चलो ! उनसे ही पूछा जाए
तबतक जो चलता है
चलता रहने दो
... sundar prastuti !!
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