आलेख
जवाहर चौधरी
कहा जाता है कि समय से पहले और भाग्य से ज्यादा किसीको नहीं मिलता है . जीवन में जो घटता है वो भाग्य का ही लिखा होता है, दुःख भी . इसलिए मान लो कि हमें भाग्य के अनुसार ही सब कुछ मिला है - घर-परिवार, सम्बन्धी , कपडे़-लत्ते , भोजन, मकान, शिक्षा , देश - समाज व संगती, सब . इसके अलावा अन्य जरूरतें हो सकती हैं , वे भी पूरी हो ही रही हैं . फिर भी हममें से ज्यादातर लोग खुश नहीं रहते। जरा-सी प्रतिकूल परिस्थिति आते ही वे दुखी हो जाते हैं . हमारा मन यदि कमजोर व बिखरा हो तो दुखी होता रहता है . मन को समझना कठिन है . जिंदगी में सब कुछ ठीक होने पर भी कई बार मन दुःख को तलाशता रहता है . दरअसल मन कभी खाली नहीं रहता है . यदि हमने मन को कहीं नहीं लगाया तो मन खुद ही भूत या अतीत में विचरण करने लग जाता है । पहले कुछ बुरा घटा हो तो उसके बारे में सोचकर दुखी होने लगता है . सोचता है कि ऐसा नहीं हुआ होता तो कितना अच्छा होता . या फिर अपने से ज्यादा धनी , सुखी व सफल लोगों, साथियों व रिश्तेदारों के बारे में सोचकर दुखी होने लगता है . अगर पास में धन-दौलत भी हो, तो भी मन किसी और छोटी बात को पकड़कर दुखी होने लगता है . मन अगर कमजोर हो तो उसे दुख में रहना अच्छा लगता है . मनोवैज्ञानिक द्रष्टि से देखें तो लगता है कि निराशा में व्यक्ति दुःख में भी सुख पाने लगता है . इससे बाहर आना बहुत जरुरी है .
मन को ठीक रखने के लिए उसे प्रशिक्षण देने कि आवश्यकता होती है . इसके बिना वह सकारात्मक नहीं हो पाता है । हमारा प्रयास यही होना चाहिए कि मन को प्रशिक्षित करें क्योंकि मन बिना सिखाए कुछ नहीं सीखता। इसके लिए अभ्यास की जरूरत होती है . अभ्यास से मन को वर्तमान में यानी यथार्थ में रखा जा सकता है , जो बीत गया सो बीत गया . अब हमारे वश में कुछ नहीं है . जो घटित हो गया , हो गया . भाग्य का निर्णय नहीं बदला जा सकता है , लेकिन भविष्य हमसे उम्मीदें लिए सामने खड़ा होता है . हर दिन हमें कुछ नया करना है , कुछ अच्छा करना है .इसलिए जरुरी है कि हमेशा मुस्कुराते रहें , सबके प्रति शुक्रिया का भाव रखें । इससे मन धीरे-धीरे सधने लगता है , उसे शांति मिलती है , आत्मविश्वास पैदा होता है , जीवन में सकारात्मकता आती है और समय शीतल होने लगता है . इसलिए अपने मन को करें मजबूत , पत्थर की तरह .
"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
ReplyDeleteपार ब्रह्म को पाईये मन ही के परतीत"
मन को प्रशिक्षित करने से सब सध जाता है ।
सार्थक आलेख के लिये आभार ।