Thursday, April 22, 2010

* हमारे गांधीजी !!!





आलेख 
जवाहर चौधरी 


गांधीजी ने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ में जिस तरह चैंकाने वाले सच को स्वीकारा है वह उनके जैसे महात्मा के लिये ही संभव था । गांधी ने स्वीकारा कि वे पत्नी पर निगरानी रखते थे । नैतिक और धार्मिक शिक्षाओं के कारण वे मानते थे कि व्यक्ति को एकपत्नी-व्रत का पालन करना चाहिये , ..... फिर तो पत्नी को भी एकपति-व्रत का पालन करना चाहिये । यदि ऐसा है तो , मैंने सोचा कि मुझे पत्नी पर निगरानी रखना चाहिये ।

गांधीजी ने निडरता की बात कहीं हैं किन्तु वे डरपोक बहुत थे । वे कहते हैं - ‘‘ मैं चोर , भूत और सांप से डरता था । रात कभी अकेले जाने की हिम्मत नहीं होती थी । दिया यानी प्रकाश के बिना सोना लगभग असंभव था ।

सत्य, अहिंसा और शकाहार के समर्थक बापू ने कई बार मांसाहार किया था । ‘‘ ..... मित्रों द्वारा डाक बंगले में इंतजाम होता था । .... वहां मेज-कुर्सी वगैरह के प्रलोभन भी था । .... धीरे धीरे डबल रोटी से नफरत कम हुई ,बकरे के प्रति दया भाव छूटा और मांस वाले पदार्थो में स्वाद आने लगा । ...... एक साल में पांच-छः बार मांस खाने को मिला । ... जिस दिन मांस खा कर आता ... माताजी भोजन के लिये बुलातीं तो उन्हें झूठ कहना पड़ता कि ‘भूख नहीं है , खाना हजम नहीं हुआ है ’ ।

उन्हें बीड़ी पीने का शौक भी लगा और इसके लिये उन्होंने चोरी भी की । वे कहते हैं - ‘‘ एक रिश्तेदार के साथ मुझे बीड़ी पीने का शौक लग गया । गांठ में पैसे नहीं थे इसलिये काकाजी पीने के बाद जो ठूंठ वे फेंक देते थे , उन्हें हमने बीनना शुरु कर दिया । लेकिन ठूंठ हर समय नहीं मिल पाते थे इसलिये अपने यहां के नौकर की जेब से एकाध पैसा चुराने की आदत पड़ गई और बीड़ी खरीदने लगे ’’।

एक बार उन पर पच्चीस रुपए का कर्ज हो गया । उन्होंने लिखा कि - ‘‘ हम दोनों भाई कर्ज अदायगी के बारे में सोच रहे थे यानी चिंतित थे । भाई के हाथ में सोने का कड़ा था । उसमें से एक तोला सोना काट लेना मुश्किल नहीं था । कड़ा कटा । कर्ज अदा हुआ । इसके बाद ग्लानी से भरे ‘मोहन’ ने पिता को पत्र लिख कर अपनी गलती स्वीकारी ।

मोहनदास जब सोलह साल के थे तब की घटना स्तब्ध करने वाली है । ’’ ..... पत्नी गर्भवती हुई । ...... पिताजी लंबे समय से बीमार चले आ रहे थे ..... उनकी बीमारी बढ़ती जा रही थी । ... अवसान की घोर रात्रि समीप आ गई । रात साढ़े दस- ग्यारह बजे होंगे । मैं उनके पैर दबा रहा था , चाचाजी ने कहा ‘जा, अब मैं देखूंगा’ । .... मैं खुश हुआ और सीधा शयन कक्ष में पहुंचा । पत्नी बेचारी गहरी नींद में थी । पर मैं सोने कैसे देता ! .... मैंने उसे जगाया ..... पांच मिनिट बीते होंगे ....... पता चला कि पिता गुजर गए ! ..... ’’

विलायत में गांधी ने नाचना-गाना भी सीखा । ‘‘ विलायत में ..... सभ्य पुरुष को नाचना जानना चाहिये । ....... मैंने नृत्य सीखने का निश्चय किया । .... एक कक्षा में भर्ती हुआ , एक सत्र की फीस करीब तीन पाउण्ड जमा किये । उस समय यह रकम बड़ी थी । कोई तीन सप्ताह में छः सबक सीखे ।

पियानो बजाता था पर कुछ समझ में नहीं आता था । .... सोचा वायलियन बजाना सीख लूं ...... तीन पाउण्ड में वायलियन खरीदा और सीखने की फीस दी ’’ ।

विलायत में आहार को लेकर वे उदार रहे ,खासकर अंडों के लिये , लिखते हैं - ‘‘ ... स्टार्च वाला खाना छोड़ा , कभी डबल रोटी और फल पर ही रहा और कभी पनीर , दूध और अंडों का सेवन किया । ..... अंडे खाने में किसी जीवित प्राणी को दुख नहीं पहुंचता है । इस दलील के भुलावे में आ कर मैंने माताजी के सामने की हुई प्रतिज्ञा के रहते भी अंडे खाए । पर मेरा यह ;अंडा मोह थोड़े समय ही रहा । ’’

ब्रम्हचर्य पालन को लेकर गांधी के विचार खूब जाने जाते हैं , किन्तु इसे साधने में उन्हें बहुत कठिनाई हुई , - ‘‘ संयम पालन ब्रम्हचर्य की कठिनाइयों का पार नहीं था । हमने अलग अलग खाटें रखीं । रात में पूरी तरह थकने के बाद ही सोने का प्रयत्न किया । किन्तु इस सारे प्रयत्न का विशेष परिणाम मैं तुरंत नहीं देख सका । ’’

गांधीजी ने कभी गाली भी खाई होगी यह विश्वसनीय नहीं लगता है । कम से कम भारत में तो ऐसा नहीं हो सकता है , लेकिन हुआ । सन् 1891 के आपपास के समय वे काशी आए थे -- ‘‘ मैं काशी-विश्वनाथ के दर्शन करने गया । वहां जो देखा उससे मुझे बड़ा दुख हुआ । संकरी , फिसलन भरी गली से हो कर जाना था । शांति का नाम भी नहीं था । मक्खियों की भिनभिनाहट और दुकानदारों का कोलाहल असह्य था । ....... वहां मैंने ठग दुकानदारों का बाजार देखा । ..... मंदिर में पहुंचने पर सामने बदबूदार सड़े हुए फूल मिले । .... अंदर भी गंदगी थी । .... मैं ज्ञानवापी में गया , वहां भी गंदगी थी । दक्षिणा के रुप में कुछ भी चढ़ाने की मेरी श्रद्धा नहीं थी इसलिये मैंने सचमुच ही एक पाई चढ़ाई जिससे पुजारी तमतमा उठे । उन्होंने पाई फैंक दी । दो-चार गालियां दे कर बोले -‘ तू यों अपमान करेगा तो नरक में पड़ेगा ’ ।

ये गांधी के सच की कुछ बानगियां थीं । हमारी नई पीढ़ी को इनसे उनके सोच और जीवन के अनछुए पक्षों का पता चलता है । उन्होंने यह सच उस समय कहा जब वे महात्मा हो गए थे । गांधी का यह सच जान कर भी हमारे मन में उनके प्रति आस्था कम नहीं होती है अपितु बढ़ती है ।

5 comments:

  1. बहुत बढिया प्रस्तुति।आभार।

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  2. बहुत ही अच्छा विचार है / अच्छी विवेचना के साथ प्रस्तुती के लिए धन्यवाद / मैं तो कहता हु ब्लॉग सामानांतर मिडिया के रूप में उभर कर इस देश में वैचारिक क्रांति का सबसे बड़ा वाहक बनकर इस देश में बदलाव जरूर लायेगा / बस जरूरत है एकजुट होकर सच्ची इक्षा शक्ति से प्रयास करने की /आपको मैं जनता के प्रश्न काल के लिए संसद में दो महीने आरक्षित होना चाहिए इस विषय पर बहुमूल्य विचार रखने के लिए आमंत्रित करता हूँ /आशा है देश हित के इस विषय पर आप अपना विचार जरूर रखेंगे / अपने विचारों को लिखने के लिए निचे लिखे हमारे लिंक पर जाये /उम्दा विचारों को सम्मानित करने की भी व्यवस्था है /
    http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html

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  3. agar hamara aachar-vyvhaar sanymit ho jaaye to bahut saari pareshaniyo ka samadhan ho jayega.

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  4. galtiyan aur buraiyan sabhi me hoti hai. Wo na ho to achhaiyon ka ehsas kaise hoga. Aur is se aapki vichardhara me antar nahi aata apitu aap achha karne ke liye prerit hi hote hai.

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  5. Gandhiji hamara gaurav he. Unaki aatm Katha SATYA KE PRAYOG se hame bahut kuchh seekhane ko milata he.
    Manav shareer he to ekchhaa he inka daman nahi kiya ja sakata .ye phir ser udati he.dheere dheere in per kabu paya ja sakata he.jo gandhiji ne kia.
    Galtiya to sabase hoti he lekin unhe swikar karane ka sahas sub me nahi hota. Jinme ye sahas hota he ve unhe swikar ker ,unhe sudhar ker Gandhiji ki tarah jeevan me saphal hote he.

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