Thursday, April 21, 2011

* हम भ्रष्ट जनम जनम के .....



आलेख 
जवाहर चौधरी              

            औरों की तरह मैं भी चाहता हूं कि भ्रष्टाचार  समाप्त हो । भारत एक पवित्र और न्यायपूर्ण व्यवस्था वाला देश  बने । लेकिन क्या ऐसा संभव है ? हमारे यहां जनता के मनोविज्ञान में भ्रष्टाचार के जिवाणु हैं और उन्हें पता ही नहीं है । कहा जाता है कि आदमी को भगवान से डरना चाहिए । कोई देख रहा हो या न देख रहा हो पर भगवान तो देख ही रहा होता है । लेकिन क्या इसका कुछ असर होता है ! हम क्या समझते हैं अपने इस भगवान को ? हर श्रद्धालू अनेक तरह के उपाय कर , पूजा-पाठ कर , भेंट, उपहार, प्रसाद आदि चढ़ा कर अपनी नैतिक-अनैतिक मनोकामना पूरी करने की प्रर्थना या मांग करता है । यहां तक कि डाका डालने या चोरी करने के पहले लोग पूजा करते हैं और सफल होने पर भेंट चढ़ाते हैं । ईश्वर  और इन मंगतों के बीच दलालों की परंपरागत व्यवस्था होती है । जो भ्रष्ट  कामनाओं को सिद्ध करने में सहायता करते हैं । धर्म मनुष्य  के लिए सर्वाधिक महत्व का माना गया है लेकिन धर्म के मर्म को समझने की अपेक्षा हम उसे अपने पक्ष में साधने की युक्ति में लग जाते हैं । 

                                   नौकरी चाहिए, परीक्षा में पास होना है, धन प्राप्ति या विदेश  यात्रा करना है, सबके उपाय हैं । बात बात पर हमारे लोग ‘मानता/मन्नत ’ मान लेते हैं ! कोई चादर चढ़ा रहा है, कोई मुर्गा-बकरा , कोई कथा-भागवत करवा रहा है तो कोई कन्याएं जिमवा रहा है । व्यापार में दिनभर बेईमानी करने वाला रात को प्रसाद चढ़ा कर ईश्वर  को रिश्वत  देता है और संतुष्ट  हो जाता है । रिश्वत  देने के बाद उसे ईश्वर  का डर नहीं लगता बल्कि ईश्वर  को वह अपने चिराग का जिन्न समझने लगता है । कितने अफसोस की बात है कि इस प्रवृत्ति को हम मान्य पूजा पद्दति की तरह स्वीकार करते हैं । आम धारणा है कि   ईश्वर  की जेब गरम कीजिए वो आपकी मदद करेगा ।  जिन दिमागों में कुछ दे कर प्राप्त करने की धारणा जमी हुई है वे भ्रष्टाचार के खिलाफ कैसे लड़ेंगे ?!

                               अपने आचरण , अपनी ईमानदारी पर किसी को भरोसा नहीं है । कोई नहीं मानता कि अच्छा आचरण करूंगा तो ईश्वर  मेरी मदद करेगा । बड़े बड़े सितारे हों , समर्थ-समृद्ध हों या बुद्धिजीवी , सबकी अंगुलियों में चमत्कारी नगीनों की अंगूठी नजर आ जाएगी । क्या ऐसे भाग्यवादियों से भ्रष्टाचार के विरुद्ध कुछ सार्थक करने की उम्मीद की जा सकती है ? जनता मनोवैज्ञानिक रूप से भ्रष्ट है । उसे षड्यंत्र  पूर्वक स्वयं पर अविश्वास  करने का प्रशिक्षण  दिया गया है । लोग चमत्कार की आशा  में अपनी ओर देखना भूल गए हैं । ऐसे लोगों की फौज कितनी ही बड़ी क्यों न हो क्या उससे भ्रष्टाचार मिटाया जा सकेगा ?

1 comment:

  1. sahi kaha sir aapne pariwaro may dahej rupi danv bhi tho esi ka rup hai.

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