आलेख
जवाहर चौधरी
मृत्युदंड को लेकर प्रायः बहसें होती रहती हैं और इस विचार को स्थापित करने के लिए तमाम तर्क दिये जाते हैं कि मृत्युदंड का प्रावधान सही नहीं है । यहां लगता है कुछ तथ्यों की अनदेखी की जाती है । सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था की सर्वोच्च प्राथमिकता यह होती है कि समाज में नियंत्रण बना रहे । कोई व्यक्ति, चाहे वह देश का हो या दूसरे देश से आया हो, यदि समाज व्यवस्था अथवा नियंत्रण को क्षति पहुंचाता है तो उसे दंडित किया जाना आवश्यक है, क्योंकि - 1. यह नियमों का उलंघन है, गैरकानूनी कृत्य है । 2. चूंकि नियम उलंघन के साथ दंड का प्रावधान है । 3. भविष्य में व्यवस्था और नियंत्रण को प्रभावी रखने के लिए जरूरी है । 4. राज्य की विश्वसनियता, संप्रभुता और न्याय के लिए दंड का निष्पक्ष रूप से प्रयोग किया जाना आवश्यक है ।
जिस तरह राज्य अपने नागरिकों से कुछ आचरणों की अपेक्षा करता है उसी तरह नागरिक भी राज्य के व्यवहार और दृष्टिकोण का आकलन और अपेक्षा करते हैं । जब जब भी राज्य कमजोर होने लगता है तब तब व्यक्ति अनियंत्रित होता है । दंड की व्यवस्था खुद राज्य के अस्तित्व के लिए आवश्यक है । मृत्युदंड मामूली बातों पर नहीं दिया जाता है और न ही यह सड़क किनारे की दंड व्यवस्था है । बहुत विचारपूर्वक और अब तो लगभग संपूर्ण शोध के बाद मृत्युदंड की पुष्टि होती है । नागरिक यदि यह पाते हैं कि वे जिस व्यवस्था में रह रहे हैं उसमें जघन्य अपराधियों के प्रति उदार या ‘मानवाधिकारवादी’ रुख अपनाया जा रहा है तो वे उस व्यवस्था के प्रति स्वाभाविक रूप से उपेक्षा का भाव रखेंगे । अक्सर अपराधी कहते पाए जाते हैं कि पहली हत्या की सजा फांसी है लेकिन दूसरी-तीसरी हत्या के लिए वही एक फांसी है । तो फिर इसमें अब सोचने या डरने की जरूरत ही क्या है ! पहली हत्या के लिए उसे डर लगा होगा, उसने सोचा भी होगा, लेकिन दूसरी-तीसरी हत्या के मामले में उसे डर नहीं है । मृत्युदंड का प्रावधान यदि नहीं हुआ तो पहली हत्या के समय ही उसे यह डर नहीं रहेगा । राज्य का डर खत्म होते ही समाज अराजकता की राह पर तेजी से बढ़ने लगेगा ।
कई बार यह कहा जाता है कि राज्य जीवन दे नहीं सकता तो उसे जीवन लेने का अधिकार भी नहीं है ! किन्तु ऐसा सोचना राज्य के साथ अन्याय है । राज्य अपने नागरिकों की रक्षा करते हुए उन्हें जीवन ही प्रदान करता है । आज तो राज्य के कार्य असीम हो गए हैं । रोजगार, शिक्षा , स्वास्थ्य, बीमा, पेंशन , सहायता, सुरक्षा, विकास आदि सब का संबंध जीवन रक्षा से ही तो है । यदि सीमारक्षा के लिए शत्रु का नाश उचित है तो आंतरिक व्यवस्था की रक्षा के लिए नियमानुसार सभी प्रकार के दंड उचित हैं । भारत जैसे देश में जहां जनसंख्या 120 करोड़ से अधिक है और जो धर्म, भाषा, जाति, प्रदेश और अन्य छोटी-बड़ी भिन्नताओं से युक्त है, व्यवस्था और नियंत्रण का प्रश्न और भी जटिल है । अमेरिका, ब्रिटेन या किसी और देश के उदाहरणों से हम अपनी व्यवस्था को परिभाषित करना चाहेंगे तो यह बड़ी चूक होगी । देश आज संसद पर हमला करने वालों और मुम्बई हमले के अपराधियों को सजा नहीं दे पा रहा है तो नागरिक मान रहे हैं कि केन्द्र सरकार कमजोर है । यही कारण है कि बार बार खबर छपती है कि आतंकी नए हमले का प्रयास कर रहे हैं । कमजोर दंड व्यवस्था अपराधियों के हौसले बढ़ाती है ।
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