लोकतंत्र में राजनीति सिर्फ होने के लिये नहीं है
महिला आरक्षण बिल के मामले में , जैसा कि मसौदे का वर्तमान स्वरूप है , महिलाओं को 33 प्रतिषत आरक्षण देने में किसी बड़े दल ने फिलहाल आपत्ती नहीं जताई है । किन्तु जैसे सामंती और पुरूष-दंभ के लक्षण भारतीय समाज में मौजूद हैं वे इस बिल को लेकर चितंन-मनन की वकालात करते हैं । यही नहीं हमारे यहां आर्थिक, सामाजिक , षैक्षिक व धार्मिक रूप से दबंग किसी भी सुधार या कल्याण योजनाओं का लाभ उठाने में आगे होते हैं तथा जिनके नाम पर या जिनके लिये योजनाएं लाई जाती हैं वे उनसे वंचित चले आते हैं । भारतीय राजनीति में अभी भी महिलाओं की सक्रियता बहुत कम है । पिछड़े तबके की महिलाएं तो नाम मात्र ही हैं । मायावती और राबड़ीदेवी जैसे दो-चार नामों के अलावा कोई उल्लेखनीय महिला राजनीतिक फलक पर दिखाई नहीं देती है । जबकि भूतपूर्व राजघरानों, वर्तमान राजनीतिक ;राजद्धघरानों, उद्योग-घरानों या फिल्म इंडस्ट्र्ीज जैसे स्थानों से महिलाएं प्रायः अपनी चमक व घमक बढ़ाने के उद्ेष्य से राजनीति में होती दिखाई देती हैं । लोकतंत्र में राजनीति सिर्फ होने के लिये नहीं कुछ करने के लिये होती है । तब तो अवष्य ही जब समाज में स्त्रियों के खिलाफ पषुवत् व्यवहार किया जाता हो , उनके मानवीय-सामाजिक अधिकारों की हत्या की जाती हो और उनकी पुकार सुनने वाले हो कर भी नहीं हों । हर दो-तीन माह में यह खबर दोहरा जाती है कि फलां जगह दबंगों ने किसी औरत को डायन घोषित कर पीटा और चैपाल पर नंगा कर गांवभर में घुमाया या हत्या की ! लेकिन यह खबर पढ़ने में नहीं आती है कि इस कुकृत्य के दोषियों के साथ कानून ने क्या किया । कुत्ते-बिल्लियों के लिये आवाज उठाने को मषहूर नेत्रियां इस मुद्दे पर कौन सा दही जमा कर बैठ जाती हैं यह गौर करने की बात है । इसका कारण उनकी अभिजात्य संवेदनहीनता के अलावा और क्या हो सकता है ! गरीबों के वोट पर फलने-फूलने वाले व भारतीय संस्कृति के रक्षक होने का दावा करने वाले राजनीतिक दल और उनकी स्वयंभू ‘कल्चरल पुलिस’ ऐसे मौकों पर पता नहीं कहां और किनके केक के टुकड़े चाटने में व्यस्त रहती है ! क्या यह सोचने की जरूरत नहीं है कि आजादी के बासठ साल बाद भी हमारे लोकतांत्रिक समाज में असंवैधानिक दबंग मौजूद और सक्रिय हैं ! आष्चर्य यह है कि इनकी दबंगई स्त्री के विरूद्ध षुरू होती है और पुलिस , कानून, नेता , न्याय प्रक्रिया आदि सभी को अपनी चपेट में ले लेती है । यदि संविधान इन दमित स्त्रियों के हक में आवाज उठाने का मौका नहीं देता है या इनको संसद में प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है तो हमारे लोकतंत्र और विकास के मायने क्या होंगे ?!महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद संसद में 55 करोड़ भारतीय स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करने के लिये लगभग 180 महिलाएं होंगी । इस अल्प संख्या में उनकी उपस्थिति तभी कारगर हो सकती है जबकि अनारक्षित सामान्य वर्ग के अलावा अजा, अजजा, ओबीसी, विकलांग और अल्पसंख्यक स्त्रियों को भी उनके हक का प्रतिनिधित्व मिले । यह उम्मीद करना कि सामान्य वर्ग के नेता या दलित वर्ग के पुरूष नेता भ्रष्टाचार की मलाई छोड़ कर उनके हक में आवाज उठाएंगे तो यह मुंगेरी सपना होगा ।
हिन्दुस्तान मे लोक तंत्र खुद ही होने के लिये बचा है कि कुछ तो रहे।
ReplyDeletecongratulation for publishing this blog.
ReplyDeletevisit
gyansindhu.blogspot.com
प्रदीप भाई और भगीरथजी आप दोनों का धन्यवाद ।
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