Tuesday, January 12, 2010

* कैसी नागरिकता ! कौन सभ्य !!



आलेख 
जवाहर चौधरी 



कभी कभी ऐसा लगता है कि समाज में जो सबसे महत्वपूर्ण और जरूरी है उसके प्रति सबसे अधिक उपेक्षा कर दृष्टिकोण रखा जाता है । जैसे सफाई को ही लें , घर में हो या बाहर , बिना सफाई के हमारा ‘स्वर्ग ’ नरक बनने में देर नहीं लगाएगा । घर में काम वाली बाई या महरी है , बाहर नगर निगम के सफाई कर्मचारी हैं । क्या हमने कभी सोचा है कि ये हमारे जीवन का कितना अहम हिस्सा हैं । किन्तु इनके प्रति हमारा आचरण प्रायः असंवेदना से भरा होता है । सड़कों पर आएदिन जलसे होते रहते हैं, बारातें, जुलूस वगैरह निकलते रहते हैं । खाने-पीने की दुकानेे , खोमचे आदि तो हैं ही । किसी दिन सुबह जल्दी उठ कर देखिये सफाईकर्मी हमारी कितनी ढ़ेर सारी करतूत साफ कर रहा होता है । हमें सभ्य बनाए रखने में उसकी कमर कितनी झुक आई है ! एक दिन पहले जुलूस निकला जिसमें उत्साही - धर्मप्राण सभ्यजनों ने पीले रंग का पावडर, जिसे रामरज कहा जाता है, पूरी सड़क पर बिछा दी । जिससे जुलूस मार्ग कितना पवित्र हुआ पता नहीं किन्तु पूरा रास्ता प्रदूषण का शिकार अवश्य हुआ । उन्हें लगा होगा कि उन्होंने बहुत ही अच्छा काम किया है , लेकिन यह नही सोचा कि ये कलयुग की सड़कें हैं सतयुग की कच्ची पगडंडियां नहीं । जुलूस निकल गया, भक्तगण अपने अपने ‘बिजनेस’ में लग गए , लेकिन सफाईकर्मी के माथे रोज से कई गुना ज्यादा कचरा चढ़ गया, यह किसीने नहीं देखा । यही हाल बारातों का है । यदि किसी सड़क पर आइस्क्रीम के कप्स, प्लेटें, चम्मच बिखरे दिखाई दें या अतिशबाजी का कचरा फैला मिले तो मान लें कि सभ्य लोगों की बारात निकली है । यहां ध्वनिप्रदूषण या ट््रेफिक जाम का जिक्र नहीं किया जा रहा है हालंाकि यह भी छोटी समस्या नहीं है । पीछे छूटा यह कचरा किसी के प्रति क्रूरता है , क्या यह विचार पैदा ही नहीं होता !! यह कैसी श्वान प्रवृत्ति है जिसमें हम खंबा दर खंबा अपनी निशनी छोड़ते चलते हैं ! चाट-पकौडी , अंडा-मछली-मुर्गी या अन्य खानपान की दुकानें रात तक कितना कचरा सड़क पर छोड़ जाते हैं इसका हिसाब है ! क्या हमें इस बात की स्वतंत्रता या अधिकार है कि हम गैरजिम्मेदाराना तरीके से दूसरों के लिये काम बढ़ा कर रखें या सार्वजनिक स्थानों को अपने उन्माद का शिकार बनाएं । माना कि सफाई कर्मियों का काम है सफाई और इसके लिये उन्हें बाकायदा वेतन भी दिया जाता है । यद्पि वे बिना शिकायत अपना ये काम करते भी हैं, लेकिन यहाॅं सवाल सफाई कर्मियों का नहीं , नागरिक या सभ्य कहे जाने वालों का है । यदि हममे इतनी भी समझ और संवेदना नहीं है तो यही विचार आता है कि कैसी नागरिकता और कौन सभ्य !

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